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*॥जय बाबा स्वामी॥*
आप किसके जीवनकाल में आए हो , आपको किसके जीवनकाल में जुडने को मिल रहा है , उसकी तरफ ध्यान दो। किसी भी संस्था के मूल पुरुष के साथ कार्य करने का एक अनोखा ही आनंद प्राप्त होता है। वह आनंद बादमें जीवन में कभी प्राप्त नहीं होता है। कई संस्थाएँ बन जाती है , कई आश्रम बन जाते हैं , पर वे आश्रम बन जाने के बाद में जो उस आश्रम का मुख्य संस्थापक है , कितने लोगों को उसके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ?
शिर्डी के साईबाबा के समय भी यही बात थी। कितने जन उनको जानते थे? उनको पागल फकीर कहते थे। आज शिर्डी का महात्म्य इसलिए बढ गया है क्योंकि उनका सूक्ष्म शरीर भी विकसित हो गया है , उनका ऑरा विकसित हो गया है। उनका प्रभाव आम आदमी पर पडने लगा है।
---- *पूज्य गुरुदेव*
२५/१/२००३
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