bharatbhai pokar:
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प्रत्तेक साधक को अपने आपको परमात्मारूपी वृक्ष की एक छोटी -सी टहनी समझना चाहिए और परमात्मारूपी वृक्ष से जो भी मिलता है , उसे बाँटना चाहिए । बाँटना ही सही अर्थ में साधक का जीवन है । जो बाँट रहा है , वही सही अर्थ में जुड़ा हुआ है और जो जुड़ा हुआ है , वही सही अर्थ में जुड़ा हुआ है , वही सही अर्थ में जीवित है । . . . 🌳
[ ही.का.स.योग. 1 ]
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*॥जय बाबा स्वामी॥*
आध्यात्मिक ज्ञान तो अनुभूतियों पर आधारित होता है। जैसे-जैसे अनुभूतियाँ बढ़ती जाएँगी , ज्ञान भी बढ़ता जाएगा। ये अनुभूतियाँ शिष्य के समर्पण पर आधारित होती है। वह जितना समर्पित होता जाएगा , वह उतनीही अनुभूतियाँ पाता जाएगा।
आध्यात्मिक ज्ञान पाना इतना सरल नहीं है। इसमें कोई समयावधि नहीं होती और न कोई पाठ्यक्रम होता है और न ही कोई नियम होते है। सबकुछ एक 'समर्पण पर' ही निर्भर होता है।
*हिमालय का समर्पण योग ३*
*॥आत्म देवो भव:॥*
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