bharatbhai pokar:
🌳      🌳     🌳     🌳     🌳
     प्रत्तेक  साधक  को  अपने  आपको  परमात्मारूपी  वृक्ष  की  एक  छोटी -सी  टहनी  समझना  चाहिए  और  परमात्मारूपी  वृक्ष  से  जो  भी  मिलता  है , उसे  बाँटना  चाहिए । बाँटना  ही  सही  अर्थ  में  साधक  का  जीवन  है । जो  बाँट  रहा  है , वही  सही  अर्थ  में  जुड़ा  हुआ  है  और  जो   जुड़ा  हुआ  है , वही  सही  अर्थ  में  जुड़ा  हुआ  है , वही  सही  अर्थ  में  जीवित  है । . . . 🌳
[ ही.का.स.योग.  1  ]

@$wiπi .:
*॥जय बाबा स्वामी॥*

आध्यात्मिक ज्ञान तो अनुभूतियों पर आधारित होता है। जैसे-जैसे अनुभूतियाँ बढ़ती जाएँगी , ज्ञान भी बढ़ता जाएगा। ये अनुभूतियाँ शिष्य के समर्पण पर आधारित होती है। वह जितना समर्पित होता जाएगा , वह उतनीही अनुभूतियाँ पाता जाएगा।

आध्यात्मिक ज्ञान पाना इतना सरल नहीं है। इसमें कोई समयावधि नहीं होती और न कोई पाठ्यक्रम होता है और न ही कोई नियम होते है। सबकुछ एक 'समर्पण पर' ही निर्भर होता है।

*हिमालय का समर्पण योग ३*

*॥आत्म देवो भव:॥*

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

рд╕рд╣рд╕्рдд्рд░ाрд░ рдкрд░ рдХुрдг्рдбрд▓िрдиी