उनका कहना था, हम वो माताएँ हैं जिनके बच्चे इन उग्रवादी गतिविधियों में लिप्त हैं ऐसी हमारी शंका हैं। बच्चों से संपर्क नहीं है और न ही हमारी उनसे कोई बातचीत होती है। लेकिन जो भी बच्चों से जाना है , उनके मन में सरकार के प्रति आकोश है और वह सब किसने उनके मन में भर दिया है यह पता नहीं है। लेकिन वे सब पठे-लिखे बच्चे हैं लेकिन सदैव आलोचनात्मक ही बातें करते हैं। हमारी इच्छा है कि आप उन्हें ध्यान सिखाएँ और वे ध्यान करने लग जाएँगे तो उनमें भी सकारात्मक विचार आएँगे और वे भी अपने राष्ट्र की मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे। मैंने कहा , मुझे उनसे मिलने में कोई डर नहीं है और मेरा दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक है। प्रयत्न करके देखने में कोई हर्ज नहीं है। कम- से- कम आपको तो एक समाधन मिल जाएगा कि आपने प्रयत्न किया। मुझे कोई हर्ज नहीं है। तो तीन दिन बाद का समय निच्छित किया गया। वह महिला बोली , मेरे ही भाई के खेत पर एक धर गोदाम जैसा बड़ा है, वहाँ पर आपको लेकर मैं चलती हूँ। रात को उस खेत पर मैं अकेला ही गया था। लड़के को नहीं ले गया। रात को वहीं सो गया तो सुबह कुछ युवक मुझसे मिलने आए। हमारी समय चर्चा चली की ध्यान क्या है? क्यों करना चाहिए ? हम भूतकाल के विचार करते हैं वे बंद हो जाएँगे , जो हम भविष्यकाल के विचार करते हैं वे बंद हो जाएँगे। हम निर्विचार स्थिति में चले जाएँगे। तो वे बोले , इतना अन्याय हो रहा है , इतना अत्याचार हो रहा है , हम निर्विचार कैसे रह सकते हैं ? वे काफी बड़े समूह में थे , मैं अकेला ही था। दिखने को तो सामान्य युवक ही लग रहे थे। चेहरे-मोहरे से भी सामान्य ही थे। लेकिन सभी व्यवस्था से अतृप्त थे , असमाधिनी थे।

भाग  - ६ -१५३/१५४

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