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*॥जय बाबा स्वामी॥*
एक नदी समुद्र को क्या दे सकती है? हाँ , नदी समुद्र को समर्पित हो सकती है। ठीक इसी प्रकार , गुरु भी शिष्य का आत्मसमर्पण चाहते हैं , ताकि वे शिष्य की आत्मा को आगे का मार्ग दिखा सकें। और शिष्य है कि अपने -आपको छोडकर बाकी सबकुछ ही समर्पित करता रहता है और गुरु उसके आत्मसमर्पण का ही इंतजार करते रहते हैं। शिष्य जो गुरु को देता है , वह भौतिक स्वरूप में होता है। वह भेंट देखी जा सकती है , दिखाई जा सकती है। पर गुरु जो शिष्य को देते हैं , वह भौतिक स्वरूप में नही होता। वह न तो देखा जा सकता है और न ही दिखाया जा सकता है क्योंकि वह सूक्ष्म रूप में होता है। वह केवल अनुभव किया जा सकता है।
*हिमालय का समर्पण योग ४/१८६*
*॥आत्म देवो भव:॥*
*॥जय बाबा स्वामी॥*
सर्वधर्म समभाव के ऊपर मैं कार्यरत था और कार्य करते-करते , करते-करते, करते-करते जैसे वो शिर्डी के साईबाबा के क्षेत्र में आ गया, उनकी प्रॉपर्टी *(आध्यात्मिक ज्ञान)* मुझे खुद-ब-खुद ट्रान्स्फर हो गई। मेरा उनके साथ कुछ भी संभंध नहीं है;संभंध है तो कार्य समान है , एक-सा कार्य है और कार्य के कारण समानता आ गई है और कार्य समानता के कारण शक्तियाँ रूपांतरित हो गईं , शक्तियाँ ट्रान्स्फर हो गईं और बुंद से सागर की शक्ल आ गई।
----- *पूज्य गुरुदेव*
अजमेर १९/१२/२००८
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