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अभी थोड़े समय पहले रमुकाका और चार साधक कल्पेशभाई, मिहिरभाई, दिलीपभाई और भविनभाई कोलकत्ता आए थे.
कोलकत्ता के साधको का नसीब था कि उनके साथ रहने मिला.कोलकत्ता के सभी साधको में से थोड़े ही साधको को यह तक (लाभ) मिला था.
रामुकाका के बारे में बाद में बताती हु.
वह चार साधक हमारे लिए बहुत बड़ा दृष्टांत है।
वे लोग पहले नागपुर, और रायपुर गुरुकार्य करके कोलकत्ता आए थे।
चार में से पहले दो साधक रामुकाका को हवन में मदद करते है। हमे यह तक मिली कि उनकी सख्त महेनत का अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
बाकी के दो साधक गायक थे जो रामुकाका को भजन के समय कंपनी देते थे।
ये सभी साधक ट्रैन से कोलकत्ता गुरुकार्य के लिए आए थे।
उनकी सफर के दौरान अपूर्ति नींद और थकान के अलावा ट्रैन में ठंडे पानी पीने की वजह से उनका गला भी बिगड़ा था।
उनका अच्छा स्वभाव, आत्मीयता,प्रेम और हमेशा कैसा भी कार्य करने के लिए तैयार रहना.यह सभी गुणों के कारण उनको तकलीफ होने के बावजूद उन्होंने सबका दिल जीत लिया।
गुरुशक्तियां उनके साथ ही थी ऐसा महसूस होता था।
वो लोग डेढ़ दिन कोलकत्ता के कस्बा एरिया के हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में रुके थे।और उसके बाद बेल्लूर, दक्षिणेश्वर,और बोइंची गए थे।
वहाँ रुकने के दौरान रामुकाका सुबह जल्दी उठ गए थे और बालकनी में खुरशि पर बैठकर ध्यान कर रहे थे। बाल्कनी में उनके आसपास गमले में कुछ पौधे थे। उनमें से एक गुलाब का पौधे पर एक गुलाब का फूल मुरजाने की स्थिति में था। वो फूल लगभग सात दिन पुराना था।
बाद में रामुकाका टेरेस पर जाकर सूर्य नमस्कार किया, थोड़ा बैठे और थोड़ा चलकर वापस आए।
किसी ने बाल्कनी में जाके देखा तो जो फूल मुरजाने की स्थिति में था वह अचानक खिल उठा था।
यह बात अभी खतम नही हुई।
उस दिन के बाद वह गुलाब का पौधा खिल उठा।और आज वह गुलाब को बारह दिन होने के बावजूद वो वही स्थिति में है।
वह कौन सी शक्ति है!
यह अच्छा लगता है कि शुद्ध और पवित्र आत्मा में से निकलने वाली शक्तियां वह गुलाब को खिलने का जरिया बनी।
दो तस्वीर ली गई थी उसमें से एक 23 फरवरी की है और दूसरी तस्वीर 5 मार्च की है।
इसके अलावा और थोड़े पौधे टेरेस पर थे।इनमे से दो बोगनवेल के पौधे एक गमले में था।
वह दो पौधे इतने बढ़ गए थे कि गमला भी टूट गया तो भी इन पौधों को जगह कम पड़ि।
पौधे के पत्ते सुख गए थे और उन पौधों को ज्यादा जगह चाहिए थी जो उन्हें नही मिली।
हररोज उन पौधों को पानी दिया जाता था।
रामुकाका कोलकत्ता से बोइंची हवन के लिए गए , यह हवन में 66 साधको ने भाग लिया।
और दूसरे दिन वे लोग नवसारी के लिए निकले ।
दूसरे दिन सुबह वह पौधे में पानी डालते समय साधक को बहुत अच्छी अनुभूति हुई। सूखे हुए बोगनवेल के पौधे पर फूल आने शरू हो गए थे.
इस मे कोई शक नही की प्रकृति एनर्जी को पूरी क्षमता से ग्रहण करती है यह उसका श्रेष्ठ दृष्टांत है।
रामुकाका को स्वामीजी के हनुमान कहा जाता है।
जहाँ गुरुदेव नही जा सकते वहाँ रमुकाका उनका माध्यम बनकर जाते है।
वह साधक सोचता था कि प्रकृति की निर्विचार स्थिति प्राप्त हो सकती है।
क्या हम भी परमात्मा की यह एनर्जी को ग्रहण करके उन पौधे जैसी स्थिति प्राप्त का सकते है?
🌴जय बाबा स्वामी🌴
श्रीमती नंदिता भट्टाचार्य
समर्पण साधिका
वेस्ट बंगाल
कोलकत्ता।
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