जिस प्रकार से डॉक्टर विभित्र बीमारियों को जानकर अपनी जानकारी बठाता है , ठीक वैसे इस प्रकार के उग्र विचारधारा के लोगों को मिलकर मै सूक्ष्म अध्ययन कर रहा था। मैंने कहा , मैं जो ध्यान की बात कर रहा हूँ , वह मेरे दृष्टि से सही है और आप सोचते हो सकता है , यही ( उग्र विचारधारा) सही हो। लेकिन आप कुछ दिन , कम-से-काम आठ दिन ध्यान करें और फिर अनुभूति करने के बाद आप निर्णय लें आपको क्या करना है। उनके मन में देशप्रेम की भावना थी लेकिन विदेशी कंपनियाँ और शासन के प्रति खूब गुस्सा था। वह बोले ही जाते थे , सुनते ही नहीं थे और बोलते समय आक्रमक होकर बोलते थे और उन्हें सारे विश्वभर की सारी जानकारियाँ थीं जो मुझे भी नहीं थी , वे सब विद्धान थे। बहस में तो मैं पड़ना ही नहीं चाहता क्योंकि मैं कोई अच्छा बहस करने वाला नहीं हूँ और न ही अच्छा भाषण दे सकता हूँ। इसीलिए मैंने आखिर में अपनी बात रखते हुए कहा , आप आठ दिन मेरे साथ ध्यान करो। अगर मैं सही हूँ तो आप मेरे साथ आ जाएँगे।और आप सही हैं तो आठ दिन के शिबिर के बाद मैं आपके साथ हो जाऊँगा क्योंकि मुझे मेरे गुरुदेव पर पूर्ण विश्वास है और विश्वास के  कारण मैं अकेला ही आपसे मिलने आ गया। मैंने उनको पूछा , आपको धूमने में डर नहीं लगता ?   तो वे बोले , हम  सामान्य ही मनुष्य हैं। सामान्य मनुष्य जैसे ही रहते हैं। हमें पहचान पाना कठीण है। लेकिन आखिर सारे प्रयत्न बेकर गए। वे आठ दिन शिबिर करने को तैयार नहीं हुए और हमारी यह वार्ता असफल ही रही और सुबह होने के पहले वे सब चले गए। मैंने अपने मन को समझाया कि मैंने मेरा प्रयत्न किया , उनका ही सुधार का योग नहीं होगा।

भाग - ६ - १५४/१५५

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