सुख और दुःख
"वास्तव में, सुख और दुःख दोनों जीवन की स्थितियाँ ही हैं | इन दोनों स्थितियों से ऊपर की स्थिति में जाने पर परमात्मा का अनुभव होता है | 'परमात्मा' के प्रति हमारा भाव ही हमें उस ऊपर की स्थिति में पहुँचा देता है और हमारे शरीर का अलग अस्तित्व कम हो जाता है, अपना स्वयं का, 'मैं' का अहंकार भी कम हो जाता है | अहंकार पर कोई भी व्यक्ति अकेला नियंत्रण नहीं पा सकता | अपने अहंकार पर नियंत्रण करना हो, तो उस अहंकार को एक सामूहिकता में विसर्जित कर दो |"
"परमात्मा को किसी भी रुप में मानना, यह एक अच्छी मानसिक स्थिति है | जब हम मानते हैं, तो भाव की एक उच्च अवस्था प्राप्त हो जाती है और यह उच्च अवस्था हमारे विचारों पर नियंत्रण करती है | और विचारों पर नियंत्रण होता है, तो मस्तिष्क तनावमुक्त हो जाता है | और मस्तिष्क तनावमुक्त हो जाता है, तो शरीर भी तनावमुक्त हो जाता है |"
(हिमालय का समर्पण योग, भाग -3, पेज 240, 242)
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