मनुष्य की उम्र जितनी बढ़ति जाएगी, उतना ही ध्यान करना, निर्विचारिता की स्थिति पाना कठिन हो जाएगा।

मनुष्य की उम्र जितनी बढ़ति जाएगी, उतना ही ध्यान करना, निर्विचारिता की स्थिति पाना कठिन हो जाएगा। ध्यान की आदत बच्चो को बचपन से लगानी चाहिए क्योंकि बचपन मे बुरे अनुभवों का जहर मनुष्य के पास नहीं होता है। इसलिए बच्चों के जीवन मे विचारों का भंडार भी नही होता है। 12 वर्ष की आयु से ध्यान सीखना चाहिए। आनेवाले समय मे मन कि एकाग्रता की बड़ी आवश्यकता होगी। तब बच्चो के काम ध्यान की  साधना ही आएगी। क्योकि आनेवाला समय कठिन होगा। क्योंकि टेक्नोलॉजी और मीडिया के हुए व्यापक प्रभाव के कारण बच्चों को अपना चित्त दूषित वातावरण से बचाने में ध्यान ही काम आएगा। जितना समय के साथ साथ विचारों का प्रदूषण बढ़ने लगेगा, वैसे वैसे जीवन मे कठिनाइयां भी बढ़ने लगेगी।

श्री शिवकृपानंद स्वामी
- हिमालय का समर्पण योग - 6

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी