🌹35. जय बाबास्वामी.🌹

        " समर्पण ध्यान"...५.

४१.  इसमें न तो क्रिया है, न आसन है और न ही प्राणायाम है। कुछ भी शरीर से करने के लिए नहीं है। शरीर से कुछ भी किया तो वह अप्राकृतिक होगा।

४२.  समर्पण ध्यान संपूर्ण प्राकृतिक है। बस अपने अस्तित्व को प्रकृति के अस्तित्व में विलीन कर दो।

४३.  अपने मैं के अहंकार को समाप्त किया तो आप प्रकृति में मर्ज (विलीन) हो गए। आप प्रकृति में मर्ज हो गए तो ध्यान खुद-ब-खुद ही लग गया।

४४.  इसमें ध्यान करने के लिए भी प्रयास नहीं करना पडते हैं। वह स्वयं ही लग जाता है।

४५.  शरीर के सारे प्रयोग छोड देना, अपने आपको सदगुरु के माध्यम से परमात्मा को संपूर्ण समर्पित कर देना ही समर्पण ध्यान है।

४६.  परमात्मा की चीज अमूल्य होती है। इसलिए यह ग्यान भी निःशुल्क प्राप्त होता है।

४७.  हम शरीर से कुछ भी करते हैं तो उससे शरीर को प्रधानता होती है, शरीर का बोध होता है। इसमें शरीर से कुछ करने का ही नहीं है।

४८.  शरीर से कुछ न करना ही समर्पण ध्यान है। यहाँ तक कि विचार भी.न करना।

४९.  समर्पण ध्यान एक गुरुमंत्र की सामूहिक शक्ति पर निर्भर है। आपने गुरुमंत्र किस भाव से कहा, उसी फर निर्भर है।

५०. हमारे भीतर का भाव चित्त को शुद्ध व पवित्र करता है और शुद्ध चित्त ही हमें सदगुरु का सान्निध्य प्रदान करता है। और सदगुरु का सान्निध्य मिल जाने के बाद ध्यान खुद-ब-खुद लग जाता है।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ६०-६१.

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