अगर आत्मा को अच्छी आत्मओं की संगत मिले , तो आत्मा ही अधिक सशक्त हो जाएगी।
अगर आत्मा को अच्छी आत्मओं की संगत मिले , तो आत्मा ही अधिक सशक्त हो जाएगी। और आत्मा अधिक सशक्त हो जाएगी तो उसका ही नियंत्रण शरीर पर हो जाएगा और आत्मओं की सामूहिकता के कारण इस व्यक्ति की आत्मा का प्रभाव भी इस व्यक्ति के शरीर पर पड़ेगा। ऐसा होने पर शरीर कोई पापकर्म करना भी चाहे , उस मनुष्य की आत्मा ही उसे वह पापकर्म करने ही नहीं देगी, भले ही यह पापकर्म नहीं करना चाहिए - यह बाहरी ज्ञान उस व्यक्ति को हो या ना हो। यानि सारा महत्व व्यक्ति की आत्मा का है।
*हिमालय का समर्पण योग २/२३२*
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