अपने-आपको जानना इस जगत् का सबसे छोटा सफर है , पर सबसे कठिन सफर है।
ऐसा लगता है , अपने-आपको जानना इस जगत् का सबसे छोटा सफर है , पर सबसे कठिन सफर है। लोग दुनिया घूम लेते हैं , चाँद पर जाते हैं , पर अपने-आप तक नहीं पहुँचते क्योंकि अपने-आप तक पहुँचने के लिए इस जगत के भौतिक साधन पर्याप्त नहीं हैं। उसके लिए परमात्मा की कृपा चाहिए और परमात्मा की कृपा तब तक नहीं हो सकती , जब तक आप परमात्मा तक नहीं पहुँचते। परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग चित्त से है। जब तक चित्त पवित्र नहीं होता और शुद्ध नहीं होता हैं , हम परमात्मा तक नहीं पहुँच सकते हैं।
*हिमालय का समर्पण योग २/४४४*
Comments
Post a Comment