*॥जय बाबा स्वामी॥*
ब्रह्मज्ञान कोई पुस्तक का ज्ञान नहीं हैं। यह एक सूक्ष्म , अनुभूती का ज्ञान हैं जो अलिखित है। यह कहीं भी लिखा हुआ नहीं है। इसे केवल अपनी इच्छाशक्ति से ही दिया जा सकता है। देनेवाले को देने का अधिकार होना चाहिए और लेनेवाले को लेने की शुद्ध इच्छा होनी चाहिए। जबतक ब्रह्मज्ञानी गुरू नहीं मिलता , तब तक ब्रह्मज्ञान नहीं हो सकता।
*हिमालय का समर्पण योग ३/ १६९*
*॥आत्म देवो भव:॥*
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