******** सत्य के संदेश ********

आत्मसाक्षात्कार एक “संस्कार” है |

सद्गुरु को अगर हम संपूर्ण “समर्पित” है , तो सदगुरु के गुण भी हमारे में उतरना चाहिये |

सदगुरु का चित्त “शुध्ध” है , तो हमारा क्यों नहीं...?

सदगुरु के मन में “इर्षा”भाव नहीं है, तो मेरे मन में क्यों है...?

सदगुरु के मन में किसी के प्रति “दुर्भावना” नहीं है, तो मेरे मन में क्यों है...?

सदगुरु  “निष्पाप ” है , तो मैं क्यों नहीं...?

सदगुरु को “लोभ” नहीं है , तो मुझे “लोभ” क्यों है...?

इन्ही सभी बातो के लिये “आत्मचिंतन” करना ही गहन ध्यान अनुष्ठान का मुख्य उद्देश है |

-श्री शिवाकृपानंद स्वामीजी
सत्य के संदेश – 45
दि. : 09/03/2013

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