*मनुष्य का मोक्ष प्राप्ति का यह एक मात्र मार्ग है- पुस्तक के सद्गुरू से प्रेरणा लेकर सचमुच के सद्गुरू को जीवंत रूप में खोजना और जीवंत सद्गुरू को उनके दोषोंसहित स्वीकार करना और उनके प्रति सम्पूर्ण समर्पित होना ताकि उनके दोष न दिखकर परमात्मा की अनुभूति हो और उस अनुभूति के सान्निध्य में ही रहना मोक्ष की स्थिति है। *_
_* जय बाबा स्वामी*_
_*HSY 1 pg 335*_
_* जय बाबा स्वामी*_
_*HSY 1 pg 335*_
*परमात्मा कभी भी किसी का मार्ग बंद नहीं करता है, रास्ता बदलता है। सदैव दूसरा, नया रास्ता बनाने के लिए कोई रास्ता बमद किया जाता है। *_
_* जय बाबा स्वामी*_
_*HSY 3 pg 268*_
_* जय बाबा स्वामी*_
_*HSY 3 pg 268*_
जय बाबा स्वामी
और ध्यान में यह धीमी प्रगति ही,स्थाई प्रगति होगी, धीमी प्रगति स्थायित्व लाएगी। एकदम से प्राप्त किये हुए यश (सफलता) को, संभाल कर रखना कठिन होता है। यह तो शरीर के नियम के अनुसार है। आप केवल उतना ही खाओ, जितना आप पचा सको, यानी खाने से भी अधिक महत्वपूर्ण पचाना है। यह प्रकृति का नियम है और यह ध्यान की पद्धति भी, प्रकृति के साथ जुड़ी हुई है।
इसीलिए इस पर भी यही नियम लागू होता है। ध्यान में प्रगति धीमी- धीमी ही होनी चाहिए । अन्यथा एक बार ऊपर जाकर, नीचे गिर जाना "आत्मग्लानि" का भाव निर्माण कर देगा । और धीमी-धीमी हुई प्रगति किसी के ध्यान (नजर) में नहीं आएगी । और समाज में ध्यान करने के, ये जो दोष है, यह केवल ध्यान की प्रारंभिक-अवस्था में पाए जाते हैं। एक बार ध्यान में एक ऊंचाई प्राप्त हो गई तो फिर कोई भय नहीं रहेगा।
~~बाबा स्वामी
हि.का स.योग
इसीलिए इस पर भी यही नियम लागू होता है। ध्यान में प्रगति धीमी- धीमी ही होनी चाहिए । अन्यथा एक बार ऊपर जाकर, नीचे गिर जाना "आत्मग्लानि" का भाव निर्माण कर देगा । और धीमी-धीमी हुई प्रगति किसी के ध्यान (नजर) में नहीं आएगी । और समाज में ध्यान करने के, ये जो दोष है, यह केवल ध्यान की प्रारंभिक-अवस्था में पाए जाते हैं। एक बार ध्यान में एक ऊंचाई प्राप्त हो गई तो फिर कोई भय नहीं रहेगा।
~~बाबा स्वामी
हि.का स.योग
॥ प्रार्थना ॥
जब भी कुछ भी , कोई भी बात , कोई भी व्यक्ति के कारण आपको लगे की आप असंतुलित हो रहे है तो कुछ भी नही करना है , आपको उसमें से चित्त निकालने के लिए केवल एक प्रार्थना करनी है । एक बहुत अच्छी -सी सकारात्मक प्रार्थना - "हे गुरुदेव , इस व्यक्ति को सदबुद्धि दो , उसको अच्छा व्यवहार दो , व्यवहार अच्छा करना सिखाओ और मेरा चित्त जो उसमेँ गया है , मेरे चित्त में जो विचार बार -बार उसीके आ रहे है , वे विचार आप ही दूर कर सकते है । आप दूर कर दीजिए । " बस इतनी प्रार्थना करो ।
वंदनीय पूज्या गुरुमाँ
गुरुपुर्नीमा - २०१३
गुरुपुर्नीमा - २०१३
श्री गादी स्थान
राजस्थान सर्मपण आश्रम अरडका अजमेर राजस्थान
राजस्थान सर्मपण आश्रम अरडका अजमेर राजस्थान
श्री विश्वचक्र अनुष्ठान दि.28.10.17 से 4.11.17 को कार्तिक पौर्णिमा के दिन कीया गया । इस अनुष्ठान के माध्यम से विश्वचैतन्य शक्ती के साथ इस स्थान पवीत्र और शुदध करके जोडा गया। यह स्थान का निर्माण उन साधको की सहायता के लिये किया गया जो ध्यान तो नीयमीत करते है पर उनका ध्यान नही लगता है।यह स्थान इतना पवीत्र और शुद्ध है। की यहाँ ध्यान करने की आवश्यकता ही नही होती इस स्थान - गर्भगृह मे आते ही ध्यान स्वयम् ही लग जाता है क्योकी यहाँ गर्भगृह के बीचोबीच श्री विश्वचक्र की स्थापना की गयी है। आप एकबार जीवन में स्वंयम ही अनुभव कर के देखे। यहाँ कृपया अपेक्षा रहीत होकर आये आत्मा के आंनद के लिये आये आत्मा की कोई भी अपेक्षा नही होती है।यहाँ गर्भगृह मे सीमीत साधको को प्रवेश दिया जाता है , इस लिये ३ दिन पूर्व रजिस्टर कर के ही आये।इस स्थान का प्रांरभ ८ नोव्हेबर २०१७ को चैतन्य महोत्सव के दिन होने वाला है।आप इस नये स्थान की, नयी श्री गुरूकृपा की अ्नुभूती अवश्य लें। यहाँ ली गयी अनुभूती आध्यात्मिक प्रगती की ओर महत्वपूर्ण पादान हो । आप सभी को खुब खुब “ आशिर्वाद”
आपका अपना
बाबा स्वामी
5/11/2017
आपका अपना
बाबा स्वामी
5/11/2017
भ्रम -- "मोक्ष" पाना पुस्तकों में इतना कठिन बताया गया है, भले ही पुस्तकें सालों पुरानी हों, तो मोक्ष की इच्छा करने से ही मोक्ष मिल सकता है क्या? ऐसा करने से ही मोक्ष मिलता तो सभी लोग मोक्ष पा लेते!" ऐसा भ्रम मन में रखने से वह भ्रम मोक्ष की इच्छा को अभिव्यक्त भी नहीं करने देगा।
हि.स.यो.४/४२६
लेकिन आज मिल सकेगा क्योंकि उचित समय और उचित माध्यम आज समाज में है। हि.स.यो.४/४२६
अब कुछ भ्रम के जाल में फँस जाएँगे और कुछ सोचेंगे, " चलो, माँगकर देख ही ले।" तो जो सोचेंगे, वे रह जाएँगें और जो माँगेंगे, वे पाएँगे।हि.स.यो.४/४२६
अब सभी को तो मोक्ष पाने की बुद्धि नहीं हो सकती है क्योंकि वह होना भी पूर्वजन्म के कर्मों के कारण ही होता है। हि.स.यो.४/४२७
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