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*॥जय बाबा स्वामी॥*
हम दान को दो प्रकार से समझ सकते हैं- सहायता का दान , आत्मसंतोष के लिए दान करना।
दान करने से हमारा आशय , जो हमारे पास है , उस में से कुछ दुसरे को स्वेच्छा से देना है। जब हम किसी बेसहारा व्यक्ति को कुछ दान करते हैं -जैसे कपडे , कंबल , पैसे आदि बाटकर दान करते हैं। लेकिन इस दान का मुख्य उद्देश्य हमारा चित्त हमारी समस्याओं से हटाकर दुसरे की समस्याओं पर ले जाना है। इससे पहला फायदा होगा -आपका चित्त आपकी समस्याओं से हटेगा , तो आपकी समस्या हल हो जाएगी और जब आप दुसरे की समस्या पर ध्यान देंगे , तो दुसरे की समस्या भी हल हो जाएगी -सिर्फ दान देते समय हमारा उद्देश्य उसकी सहायता करना ही होना चाहिए, उसे आत्म निर्भर बनाना होना चाहिए। इसलिए यह दान जरूरतमंद व सुपात्र को करना चाहिए। यह दान का एक प्रकार होता है।
क्रमशः .....
*मधुचैतन्य जुलै २००५*
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