Rita Chauhan:
🌹जय बाबा स्वामी 🌹
अमरेली शिबीर में पू. स्वामीजी ने कहा की मैने गुरु शक्तियों से शिकायत की, शिवबाबा ने जो अनुभूति मुजे कराइ थी उसी मुल रुप मे मैने अपने साधको को अनुभूति कराई है तो मेरी जो आध्यात्मिक प्रगति हुई वैसी साधको की क्यों नही होती
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गुरु शक्तियों ने बताया कि साधक बहुत अच्छे है साधना भी करते है लेकिन ज्यादातर साधक तीन चक्र में से पार नहीं हो पाते, ये उनके अपने नीजी प्रोबलेम है इसमें गुरु कुछ नहीं कर सकता।
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ये तीन चक्र कौन से है और उसके पार कैसे जाये इसके बारे में स्वामीजी ने विस्तार से बताया
🌞 नाभिचक्र :-
ये चक्र पति-पत्नि के आपसी संबंध पे आधारित है, इसलिए पति-पत्नियों के आपसी संबंध जितना मधुर होगे इतना जल्द इस चक्र से पार हो सकेंगे
❤ ह्रदय चक्र :-
अपने मां-बाप के साथ कैसा संबंध है, मतलब हमारे माता-पिता हमसे कितना खुश है इन पर ये चक्र आधारित है।
☸ विशुद्धी चक्र :-
अपने भाई-बहन के साथ कैसा संबंध है उस पर ये चक्र आधारित है, अपने भाई या बहन से आपके संबंध अच्छे नहीं है तो आपही पहल करे संबंध मधुर बनाने की क्योंकि आपको जरूरत है।
🌹ईस प्रकार ये तीन चक्र के शुद्धीकरण के बीना आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं है
🌷🌷 स्वामीजी ने बताया कि अनुभूति का ज्ञान तो मुजे कबका मिल चुका था लेकिन ये तीन चक्र से जबतक पार नहीं हुआ मेरी भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हुई थी
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Bindya Solanki:
🙏॥ प्रार्थना ॥ 🙏
जब भी कुछ भी , कोई भी बात , कोई भी व्यक्ति के कारण आपको लगे की आप असंतुलित हो रहे है तो कुछ भी नही करना है , आपको उसमें से चित्त निकालने के लिए केवल एक प्रार्थना करनी है । एक बहुत अच्छी -सी सकारात्मक प्रार्थना - "हे गुरुदेव , इस व्यक्ति को सदबुद्धि दो , उसको अच्छा व्यवहार दो , व्यवहार अच्छा करना सिखाओ और मेरा चित्त जो उसमेँ गया है , मेरे चित्त में जो विचार बार -बार उसीके आ रहे है , वे विचार आप ही दूर कर सकते है । आप दूर कर दीजिए । " बस इतनी प्रार्थना करो ।
वंदनीय पूज्य गुरुमाँ
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गुरुपूर्णिमा - २०१३
Aneri:
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गुरुशक्तियों की विशेषता होती है- वे सदैव मनुष्य के भीतर छुपे हुए गुणों को पहचानती है और उन गुणों पर अपनी कृपा रखते हुए उन गुणों को ही इतना विकसित करती हैं कि मनुष्य के उन गुणों के आगे मनुष्य के दोष गौण हो जाते है।
🌹हि.स.यो.४/४०४🌹
अगर हम गुरुशक्तियों के किसी भी माध्यम से जुडेंगे तो हमारा सकारात्मक गुण, भाव बढेगा ही, फिर वे गुरुशक्तियां मंत्र के माध्यम से प्राप्त हों या मूर्ति के माध्यम से, अनुभूति के माध्यम से प्राप्त हों या जीवंत गुरु के माध्यम से, किसी भी माध्यम से हों। माध्यम तो अलग-अलग हो सकते हैं पर परिणाम तो समान ही होता है, एक-सा होता है। वह परिणाम है- मनुष्य के सकारात्मक गुणों का विकास। और वह होता ही है।
🌹हि.स.यो.४/४०५🌹
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