हिमालय
उन ऋषि और मुनियों की तपस्या का प्रभाव इस समूचे क्षेत्र पर होता है। सारा ऊपर का हिमालय ही इन श्री क्षेत्रों से भरा पड़ा है , पानी ऊपर तो कोई जगह ही नहीं है , जो किसी श्री क्षेत्र की न हो। इन क्षेत्रों के आसपास भी अगर कोई आया और वे नहीं चाहते कि आप भीतर प्रवेश करें , तो आप वहाँ जाकर भी दिशा भूल जाएँगे और अन्य किसी और चले जाएँगे। यानी दिशाभूल हो जाती है। और यह श्री क्षेत्र का प्रभाव ही हमारी दिशाभूल करता है। इन श्री क्षेत्रों में तो समर्पित होकर , समरस होकर ही जा पाया था। और बाद में तो गुरु ने दूसरे गुरु के पास भेजा था। और जब एक गुरु दूसरे गुरु के पास भेजते , तो मेरे वहाँ पहुँचने के पहले मेरे आनी की सूचना पहुँच जाती थी। यह श्री क्षेत्र के भी सात भाग होते हैं। हमारे शरीर के भीतर यह जो सात चक्र हैं , ये सातों चक्रों के अपने क्षेत्र होते हैं और वे ही सात श्री क्षेत्र बनाते हैं। और एक के बाद एक लेयर ( परत) को क्रॉस कर सकता है। और यही कारण है कि कोई भी मनुष्य इस श्री क्षेत्र में प्रवेश ही नहीं कर सकता है। और यह आभामण्डल और श्री क्षेत्र कल्पना नहीं हैं। आपकी अगर आध्यात्मिक स्थिति है यह सब आपको भी अनुभव हो सकता है। और जो पवित्र स्थिति तक पहुँचे हैं , उन्हें वह श्री क्षेत्र का अनुभव होता है। सारा आध्यात्मिक क्षेत्र ही पवित्रता पर आधारित है। पवित्रता अध्यात्म का आधार है , यह कहा जा सकता है। हम जिस प्रकार के विचार करते हैं , ठीक उसी प्रकार का आभामण्डल हमारे आसपास निर्माण होता है।
भाग- ६ -२२१/२२२
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