अनुष्ठान मैं एक जैन साधु ने गुरूमाँ से क्या माँगा होगा आप कल्पना नहीं कर सकते
अभी पैतालीस दिन का अनुष्ठान हुआ ना... .. तो अनुष्ठान मैं एक जैन साधु ने गुरूमाँ से क्या माँगा होगा आप कल्पना नहीं कर सकते उसने गुरूमाँ से ये माँगा कि कुटीर की धूल ला के मेरेको दों की वो लेके मैं साथ में जाऊँगा |
स्वामीजी मेरे साथ हैं , ऐसा मैं महसूस करता हूँ | तो कुटीर में वो जो धूल पडी़ है ना ,
वो झाडू से साफ करके मेरेको एक डब्बी में भरके लाके दों |
वो झाडू से साफ करके मेरेको एक डब्बी में भरके लाके दों |
ये गुरूमाँ से माँगा , वो जैन मुनि ने | तो गुरूचरण की धूल मेरे पास रहेगी , तो मैं महसूस करूगाँ कि
स्वामी जी मेरे साथ में हैं |
दुसरा थोड़ा ना , उनसे कम्पेरीझन मत करो |
मैं पाँचसो किलोमीटर चलके तुम्हारे पास आता हूँ और वो पाँचसो किलोमीटर चलके मेरे पास आते हैं
इसमें अंतर है ना ! रीसीविन्ग
( ग्रहण शीलता ) में फकॅ पडे़गा ही......
समझ में आया ?
मैं पाँचसो किलोमीटर तुम्हारे पास आता हुँ और वो मेरे पास पाँचसो किलोमीटर आते है ...... चलके
तो वो अंतर नहीं है क्या ?
स्वामी जी मेरे साथ में हैं |
दुसरा थोड़ा ना , उनसे कम्पेरीझन मत करो |
मैं पाँचसो किलोमीटर चलके तुम्हारे पास आता हूँ और वो पाँचसो किलोमीटर चलके मेरे पास आते हैं
इसमें अंतर है ना ! रीसीविन्ग
( ग्रहण शीलता ) में फकॅ पडे़गा ही......
समझ में आया ?
मैं पाँचसो किलोमीटर तुम्हारे पास आता हुँ और वो मेरे पास पाँचसो किलोमीटर आते है ...... चलके
तो वो अंतर नहीं है क्या ?
पूज्य गुरूदेव
( महाध्यान गांधी धाम -2016)
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