आदर्श साधक

४१.  यह सदगुरु से आत्मिक स्तर पर जुडा रहता है। इसलिए इसे शरीर का आकर्षण नहीं होता है।
४२.  अब प्रश्न उठता है,  ऐसे आदर्श साधक को पहचानेंगे कैसे ?  पहली पहचान-इसे मिलने के बाद आपको अच्छा लगेगा,  इसके साथ आपको नकारात्मक विचार नहीं आएँगे।
४३.  हम किन स्तर के साधकों की संगत में रहते हैं, उसी के उपर हमारी आध्यात्मिक प्रगति होती रहती है।
४४.  इसलिए सदैव अच्छे आदर्श साधकों की संगत में रहो, तो कुछ ना कुछ पाओगे।
४५.  साधक भी तीन प्रकार के होते हैं।
पहला साधक 'रोगी साधक' होता है।  इसे शरीर की अनेक बीमारियाँ रहती हैं और इसका चित्त सदैव अपनी बीमारियों पर ही होता है। और बीमारियों में सदैव चित्त रखने से इसका चित्त भी बीमार व अस्वस्थ रहता है। यह नहीं जानता - बीमारियाँ शरीर की हैं, वह तो आत्मा है।
दूसरा साधक  'भोगी साधक' होता है। इसका चित्त भोग-विलास में होता है। यह प्रायः अतृप्त  देखा गया है। इसे शरीर की कोई बीमारी नहीं होती, पर मन की अतृप्ति होती है। इसका मन सदैव किसी ना किसी लालसा में लिप्त होता है। इसका चित्त कभी काम-वासना में लिप्त रहता है, तो कभी भौतिक साधनों में। यह सदैव शरीर को कष्ट दिए बिना आध्यात्मिक प्रगति चाहता है, पर वह साधना तो अपनी इच्छाओं की, अपने भोग-विलास की करते रहता है। वह यह नहीं जानता - भौतिक साधन शरीर को सुख दे सकते हैं, पर वह सुख शाश्वत न होगा। वह थोड़े समय का अस्थाई सुख होता है।
तीसरा साधक 'योगी साधक' होता है। यह शरीर-सुखों के अधीन नहीं होता। शरीर के सुख मिले तो ठीक, नहीं मिले तो भी ठीक। यह जानता है -शाश्वत सुख आत्मा का सुख है। इसलिए यह जीवन में आत्मा के शाश्वत सुख की खोज में रहता है जो सुख पाने के बाद जीवन में कोई सुख की कामना ही नहीं रहती है। यह अपनी ही मस्ती में, अपने ही आनंद में रहता है क्योंकि यह आत्मा से सुख भोगते रहता है।
यह साधक आदर्श साधक है। यह साधक पूर्ण समर्पित साधक है। जीवन में कुछ मिला तो भी गुरुकृपा से, न मिला तो भी गुरुकृपा से। वह सभी परिस्थितियों को साक्षीभाव से देखता है। ऐसा सादक अपने सदगुरु के चैतन्य से जुडा रहता है। और ऐसे साधक सदैव सदगुरु का संरक्षण प्राप्त किए रहते हैं। यह गुरुशक्ति की छतरी में सदैव सुरक्षित रहता है।
४६.  हमें अच्छे योगी साधकों की संगत करना चाहिए ताकि हमें अच्छी स्थिति प्राप्त हो सके। ऐसे साधकों की सामूहिकता की खोज करना जीवन में बडा कठिन है। इसीलिए 'गुरुचरण' वह स्थान है, जहाँ ऐसे साधक सामूहिकता में रहते हैं।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ११९-१२१.

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