आदर्श साधक


११.  यह कम बात करता है। बात करके अपनी प्राप्त ऊर्जा को गँवाता नहीं है।
१२.  यह साधक सामुहिकता में सदैव नियमित ध्यान करता है।
१३। यह गुरुकार्य को अपना सौभाग्य समझता है क्योंकि वह जानता है, "कार्य तो कोई ना कोई कर ही देगा। मुझे करने को मिला, यह मेरा सौभाग्य है।"
१४.  यह जो भी गुरुकार्य करता है, बडी एकाग्रता से करता है। अपनी ओर से उस कार्य को सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करता है।
१५.  यह गुरुकार्य को  'आत्मा के द्वारा आत्मा के लिए किया गया कार्य' समझकर करता है।
१६.  यह पानी जैसा होता है। किसी भी प्रकार के रंग को अपना लेता है सबसे एक-सा व्यवहार करता है।
१७.  इसके सामने साक्षात् सदगुरु भी हों, तो भी इसका चित्त सदगुरु के शरीर पर नहीं, उनके शरीर से निकलने वाले 'चैतन्य' पर रहता है।
१८.   क्योंकि यह 'गुरु साक्षात् परब्रह्म' मानता है।
१९.  यह साधक सुबह जल्दी उठता है और रात जल्दी सोता है।
२०.  सुबह जल्दी उठकर नियमित ध्यान करता है।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ११६-११७.

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