स्वामीजी के प्रति पूर्ण समर्पण

कई बार साधक अपना अहंकार  बनाए रखते हैं और सोचते हैं कि मेरा तो स्वामीजी के प्रति पूर्ण समर्पण है , मैं तो पूर्ण समर्पित हूँ। लेकिन वास्तव में वह दुसरों के प्रति अच्छा या बुरा भाव रखते हैं। किसी के प्रति अच्छा भाव रखना और बुरा भाव रखना दोनों ही समर्पण के भाव से विरुद्ध है । सभी के प्रति समान भाव खो। अच्छा भी मत रखो, बुरा भी मत रखो । सबके प्रति एक-सा भाव रखो अगर आपका पूर्ण समर्पण हैं तो आपका भी आपके गुरुदेव के  समान सबके प्रति समान भाव का अनुभव होगा ।

मधुचैतन्य 
जुलाई, ऑगस्ट, सप्टेंबर २००९ 
पन्ना

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी