"आत्मसाक्षात्कार...३.
२१. मनुष्य के शरीर का जन्म ही आत्मा के जन्म के लिए होता है। लेकिन इन दो जन्मों के बीच कई जन्मों का अंतराल होता है। क्योंकि शरीर के कई जन्मों के बाद आत्मा का जन्म होता है। मनुष्य का जन्म वह रास्ता है जो आत्मा के जन्म तक पहुँचता है।
२२. जब तक आत्मा के जन्म की स्थिति नहीं बनती है, आत्मा का जन्म नहीं होता है।
२३. यह कह सकते हैं कि शरीर तो फल का छिलका है। वह उत्तरे बिना भीतर का आत्मारूपी फल प्रगट नहीं होता है।
२४. शरीर को जन्म देने वाली माँ होती है। ठीक इसी प्रकार से आत्मा को जन्म देने वाली माँ नहीं मिलती, आत्मा का जन्म नहीं होता है।
२५. 'सदगुरु' आत्मा को जन्म देने वाली माँ है। जिस प्रकार जीते-जी माँ की कद्र बच्चा नहीं जानता, ठीक वैसे ही आत्मा को जन्म देने वाली माँ 'सदगुरु' की जीते-जी कद्र नहीं होती है।
२६. जिस प्रकार शरीर को जन्म देने वाली माँ केवल एक ही हो सकती है, ठीक उसी प्रकार आत्मा को जन्म देने वाली माँ भी एक ही होती है।
२७. सदगुरु आत्मा को जन्म देने वाली माँ है। इसलिए उसे 'गुरुमाऊली' कहा गया है याने आत्मा की माँ।
२८. जिस प्रकार बच्चे को जन्म देते समय गर्भधारण करना पडता है, सँजोना पडता है, प्रसल-पीडा सहन करनी पडती है और अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर बच्चे को जन्म देना पडता है;
२९. ठीक इसी प्रकार से 'सदगुरु' को अपना सर्वस्व दाँव पर लगाना पडता है, प्रसव-पीड़़ा सहन करनी पडती है और तब कहीं वह किसी आत्मा को जन्म दे सकता है।
३०. 'सदगुरु' तो अपना सर्वस्व दे चुका होता है। फिर भी उसके बच्चे को उसका एहसास तक नहीं होता। इसीलिए प्रसव-वेदना का दर्द स्त्रियाँ जल्दी समझ सकती हैं और समझती हैं।
आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. १०१-१०२.
आपको आपका कार्य करते समय तो यह निर्विचारिता की स्थिति प्राप्त होती है। लेकिन आप कोई कार्य न कर रहे हैं और पूर्णतः शरीर निष्क्रिय है तो भी आपको विचार नहीं आएँगे। हम शरीर को व्यस्त रखते हैं तब हमको कोई विचार नहीं आते लेकिन जब हम निष्क्रिय होकर आराम करते हैं , तब हमें खूब विचार आते हैं। एक बौद्ध गुरु एक बोद्ध मंदिर में ध्यान कर रहा था और उसी मंदिर में मैं भी रहता था। तो मंदिर में आई हुई स्रियाँ जब शाम मेरे शिविर में आई तो मैंने उनसे पूछा था , दीदी आप सुबह ध्यान करने आती हैं, तब आपको विचार बंद होते हैं क्या ? वे स्रियाँ भोली थीं। उन्होंने उत्तर दिया था, नहीं गुरुजी , हम जब गोभी के खेत में गोभी काटते हैं तब बिल्कुल भी विचार नहीं आते हैं। लेकिन यहाँ जब ध्यान करते हैं तब ही लेकिन यहाँ जब ध्यान करते हैं तब ही अधिक विचार आते हैं। इसका अर्थ यह - जब हम निष्क्रिय रहते हैं तभी हमें अधिक विचार आते हैं।
हमारे यही अति विचारों से इस चक्र के खराब होने पर डायबेटीस की बीमारी हो जाती है। दूसरा , त्रांत्रिक - मांत्रिक लोग भी आपसे इस चक्र को प्रभावित कर सकते हैं। जो बाघाएँ होती हैं वह विचारों के माध्यम से होती हैं। अगर किसी मनुष्य के विचारों को असंतुलित किया तो उस मनुष्य को भी असंतुलित किया जा सकता है। इन सभी विचारों का संबंध हमारे शरीर के साथ ही है।इसलिए चलो , हम अपने-आपको एक पवित्र आत्मा समझें। इससे हम हमारे जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। अब हम ध्यान करेंगे। कहकर मैंने सभी का ध्यान करवाया।
भाग -६ -२०८/२०९
भाग -६ -२०८/२०९
शिरड़ी महाशिबिर के ८ वें दिन की कुछ मुख्य सुर्खिया।
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अनुभव से बड़ा कोई गुरु नही है।
चित्त का दूषित होने का मार्ग आँख है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सोचो।
अति विचार आनेसे आपका चित्त खराब हो जायेगा। चित्त को ऐसी जगह रखो, जहाँ आपकी प्रगति हो।
परमात्मा कल भी था, आजभी है और कल भी रहेगा। परमात्मा विश्व चेतना है। परमात्मा शरीर हो ही नहीं शकता।
जय बाबा स्वामी
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अनुभव से बड़ा कोई गुरु नही है।
चित्त का दूषित होने का मार्ग आँख है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सोचो।
अति विचार आनेसे आपका चित्त खराब हो जायेगा। चित्त को ऐसी जगह रखो, जहाँ आपकी प्रगति हो।
परमात्मा कल भी था, आजभी है और कल भी रहेगा। परमात्मा विश्व चेतना है। परमात्मा शरीर हो ही नहीं शकता।
जय बाबा स्वामी
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