आपको आपका कार्य करते समय तो यह निर्विचारिता की स्थिति प्राप्त होती है। लेकिन आप कोई कार्य न कर रहे हैं और पूर्णतः शरीर निष्क्रिय है तो भी आपको विचार नहीं आएँगे। हम शरीर को व्यस्त रखते हैं तब हमको कोई विचार नहीं आते लेकिन जब हम निष्क्रिय होकर आराम करते हैं , तब हमें खूब विचार आते हैं। एक बौद्ध गुरु एक बोद्ध मंदिर में ध्यान कर रहा था और उसी मंदिर में मैं भी रहता था। तो मंदिर में आई हुई स्रियाँ जब शाम मेरे शिविर में आई तो मैंने उनसे पूछा था , दीदी आप सुबह ध्यान करने आती हैं, तब आपको विचार बंद होते हैं क्या ? वे स्रियाँ भोली थीं। उन्होंने उत्तर दिया था, नहीं गुरुजी , हम जब गोभी के खेत में गोभी काटते हैं तब बिल्कुल भी विचार नहीं आते हैं। लेकिन यहाँ जब ध्यान करते हैं तब ही लेकिन यहाँ जब ध्यान करते हैं तब ही अधिक विचार आते हैं। इसका अर्थ यह - जब हम निष्क्रिय रहते हैं तभी हमें अधिक विचार आते हैं।

हमारे यही अति विचारों से इस चक्र के खराब होने पर डायबेटीस की बीमारी हो जाती है। दूसरा , त्रांत्रिक - मांत्रिक लोग भी आपसे इस चक्र को प्रभावित कर सकते हैं। जो बाघाएँ होती हैं वह विचारों के माध्यम से होती हैं। अगर किसी मनुष्य के विचारों को असंतुलित किया तो उस मनुष्य को भी असंतुलित किया जा सकता है। इन सभी विचारों का संबंध हमारे शरीर के साथ ही है।इसलिए चलो , हम अपने-आपको एक पवित्र आत्मा समझें। इससे हम हमारे जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। अब हम ध्यान करेंगे। कहकर मैंने सभी का ध्यान करवाया।
भाग -६ -२०८/२०९

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