समस्या
कभी-कभी तो हम समस्या के इतने अधीन हो जाते हैं कि जीवन छोटा और समस्या बड़ी मालूम होती है। सारा जीवन ही समस्या ग्रस्त मालूम जान पड़ता है। जबकि यह होता नहीं है।जीवन बहुत बड़ा है और उस बड़े जीवन में एक क्षण ही समस्या रहती हैं। लेकिन जीवन समस्या नहीं है। जीवन में समस्या है। समस्या औऱ जीवन दोंनो अलग-अलग हैं।लेकिन हम समस्या को अधिक महत्व देते हैं। और जीवन को कम और " जीवन समस्या है " ऐसे मानने लग जाते हैं। और जो मानने लग जाते है वह होना प्रारंभ हो जाता है। औऱ वास्तव मे
ही जीवन समस्याग्रस्त हो जाता है। " साधक " के मानने पर ही सबकुछ निर्भर होता है।
मधुचैतन्य
जुलाई, ऑगस्ट, सप्टेंम्बर २००९
पन्ना ५
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