सहनशीलता

*॥जय बाबा स्वामी॥*
मनुष्य को अपनी उम्र के साथ-साथ अपनी सहनशीलता बढानी चाहिए क्योंकि सहनशीलता की कमी असंतोष का कारण है। आज जगत में जो असंतोष बढ रहा है , उसका एक मात्र कारण सहनशीलता की कमी है।
आनेवाले भविष्य में मनुष्य के सुखी जीवन का मुख्य आधार सहनशीलता होगी क्योंकि इस सहनशीलता की कमी मनुष्य-जगत में होनेवाली है।
प्रकृती के सान्निध्य में रहने वाले लोगों में बडी सहनशीलता व धैर्य पाया था। मुझे लगता है कि प्रकृती का यह अनुपम उपहार ही है जो प्रकृती के सान्निध्य में मनुष्य को प्राप्त होता जाता है।
*सहनशीलता आत्मा की शक्ति है।* आत्मा जितनी सशक्त होगी , उतनी ही सहनशीलता अधिक होगी।
मनुष्य जैसे जैसे ध्यान करता है , वैसे वैसे वह प्रकृतीमय होते जाता है और प्रकृतिमय हो जाने से सहनशीलता उसमें स्थापित होनी शुरू हो जाती है। और इस सहनशीलता के कारण मनुष्य कठिन से कठिन समय में भी शांत रहता है।
मनुष्य को सहनशीलता एक सशक्त आत्मा की देन है।
सहनशीलता एक ऐसी शक्ति है जो ध्यान करने से मनुष्य के भीतर ही विकसित होती है। प्रत्येक मनुष्य को यह स्वयं विकसित करनी पडती है। इसे बाहर प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

*मधुचैतन्य सितंबर २०१५/२८*
  

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