* मैं एक पवित्र आत्मा हुं *

मैं एक पवित्र आत्मा हुं यह *कहना* और मैं एक पवित्र आत्मा हुं यह *मानना* इन दोनों में ही _भाव_ का अंतर होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में सारी प्रगति भाव पर निर्भर होती है। पिछले १५ साल में बुद्धि का ईतना *विकास* हुआ है। कि भाव पक्ष समाज का *कमजोर* हो रहाँ है। और यह एक तरफ़ा *विकास* एक प्रकार का *असंतुलन* निर्माण कर रहा है। जो भविष्य में समाज के लिये ही *घातक* सिद्ध होगा। समाज मे रहकर संतुलित बने रहने का एक ही मार्ग है। *ध्यानयोग* यहीं मनुष्य को संतुलित कर सकता है। और अच्छी आत्माओं से आपको जोड़ सकता है।

बाबा स्वामी
सद्गुरु के ह्रदय से(3)

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