मेरी इच्छा है कि इस शिविर के आखिरी दिन तू अवश्य मेरे साथ चल। मैंने तेरा वहाँ उल्लेख किया है, तो स्वामीजी की भी तुमसे मिलने की इच्छा है और उन्होंने वह दो बार बोल कर भी दिखाई है। मेरे ही साथ चलना और मेरे ही साथ वापस आ जाना। कितनी अच्छी शिविर की व्यवस्था मेरे जीवन में प्रथम बार हुई है , वह अवश्य तू देख। जिस प्रकार कोई बच्चा कोई कालकूती का निर्माण करता है , तो उसकी इच्छा रहती है कि वह अपनी माँ को वह अवश्य बताए। अब तो मेरी माँ नहीं है , लेकिन तू ही मेरी आध्यात्मिक जगत् की माँ है। तेरे ही लालन-पालन में मेरा आध्यात्मिक बीज वूक्ष बन पाया है। पत्नी बोली , तुम न , किसी की भी तारीफ करते हो , उसको चने के झाड़ पर चढ़ा देते हो। मैंने कहा , नहीं , यह मेरे भीतर की भावना है।
हि. का. स.भाग - ६ २१८
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