* आत्मसाक्षात्कार...६. *

५१.  जिस प्रकार एक अंडे के ऊपर दाग हो तो आवश्यक नहीं कि बच्चे के ऊपर दाग रहेगा। आत्मसाक्षात्कार के पहले कोई गलती करता है तो क्षमा किया जा सकता है क्योंकि जो भी गलती हुई वह अनजाने में हुई, अग्यानतावश हुई।

५२.  आत्मग्यान-प्राप्ति के बाद अगर गलती कोई करता है, तो जानबूझकर की गई गलती मान जानी चाहिए।

५३.  आत्मग्यान-प्राप्ति के बाद कई साधकों को ऐसा भी अनुभव आया है कि जीवन में अचानक समस्या खड़ी हो गई, मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा।

५४.  ऐसा इसलिए होता है कि पूर्वजन्म के कर्म तो भोगने ही होंगें। तो पहले खराब कर्म नष्ट होता हैं, बाद में तो कष्ट हैं ही नहीं जीवन में। इस कारण भी यह होता है।

५५.  कई बार मनुष्य का *'मैं'* का अहंकार तोड़ने के लिए भी मुसीबते आती हैं। मनुष्य का *'मैं'* का अहंकार टूटे और वह परमात्मा के ज्यादा करीब चला जाए। *'मैं'* का भाव जैसे-जैसे समाप्त होता है, वैसे परमात्मा के प्रति भाव जागने लगता है।

५६.  ऐसे जीवन की कठिनाइयों में जीवन के प्रत्येक संकट का हिम्मत के साथ सामना करना चाहिए। प्रत्येक संकट को सीढ़ी बनाकर प्रभु के पास पहुँचना चाहिए।

५७.  प्रत्येक समस्या को प्रभु की कृपा समझकर ग्रहण करो, अस्वीकार मत करो, समस्या से डरो मत, समस्या के कारण भयभीत मत हो, समस्या के प्रति आक्रोश मत करो। अपने जीवन में आई समस्या के लिए किसी को भी दोषी मत मानो।

५८.  तुम्हारे जीवन में आई समस्या के लिए बस तुम ही जिम्मेदार हो, और कोई नहीं। इस बात को जितने जल्दी स्वीकार करोगे, इतना ही संकट का हल जल्दी निकलेगा। बस, स्वीकार कर लो। पर, 'मैं'* रूपी अहंकार स्वीकार करने नहीं देगा, कहेगा, *"वाह  ऐसे कैसे स्वीकार करें ?"*

५९.  वास्तव में स्वीकार करने के अलावा जीवन में कोई रास्ता नहीं है।

६०.  स्वीकार जितने जल्दी करोगे, उतना ही जल्दी आत्मशांति को प्राप्त करोगे।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. १०६-१०७.

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