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मनुष्य के जीवन मे चित्त की स्थिति एक तराजू जैसी होती है । वह स्वयं कुछ नही करता पर जो होता है उसका परिणाम वह प्रदान करता है । चित्त के तराजू मे एक ओर जो वजन के मापदंड होते है वह छोर आत्मा का होता है । आप जितना भीतर चित्त रखोगे , वह बाँट वजन के बढ़ते जाएँगे । और दूसरी ओर शरीर होता है । आप आपके शरीर की ओर शरीर की इच्छाओं की ओर , शरीर की आवश्यकताओंकि ओर शरीर की अहंकार की ओर जितना अधिक ध्यान दोगे उतना ही आपके चित्त रूपी तराजू का दूसरा पाला बाहर की ओर होना प्रारंभ होगा । और फिर ध्यान कर अपने चित्त को भीतर की ओर मोडना होगा । और यही प्रक्रीया मनुष्य के जन्म से म्रुत्त्यु तक चलते ही रहती है । और उसी संतुलन की स्थिति बनाए रखना और उसी संतुलन की स्थिति मे म्रुत्यु आना ही "'मोक्ष "' है ।.........
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ही..का..स..योग [ ५ ]
🙏।।जय बाबा स्वामी ।।🙏
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