जल-तत्व
" आप.., पानी की सामूहिकता के जब कभी, प्रथम दर्शन करते हैं, दर्शन का पहला प्रभाव -- अच्छा लगता है ..।यह अच्छा लगना, दर्शन मात्र से होता है, पानी की सामूहिकता के सानिध्य की दूसरी पादान है--- अगर आप वहां पर 20 मिनट खड़े रहे, या बैठे , तो उसका प्रभाव आपके मन पर भी होना प्रारंभ हो जाएगा., मन के दूषित विचारों को बाहर निकलने के लिए 20 मिनट की अवधि , आवश्यक होती है। क्योंकि 20 मिनट के बाद ही, यह प्रक्रिया होनी प्रारंभ होती है । शुद्धिकरण की प्रक्रिया से यह महसूस होता है-- जो अनावश्यक विचार हम कर रहे थे, वे कम हो गए, मन को प्रसन्न लगने लग गया, भूतकाल के विचार, जो बार-बार आ रहे थे , वो कम हो गए, मन जो अस्थिर हो, भटक रहा था, वह भी कम भटक रहा है। एक प्रकार की शांति का अनुभव करोगे । और अगर आप
जल-तत्व के उस स्वरूप के पास बैठोगे तो, अनुभव होगा की,
चित्त-शुद्धि की प्रक्रिया , पूर्ण हो गई है। अब चित्त पवित्र और शुद्ध होकर.., प्रकृति के साथ, समरस हो रहा है, और इस कारण चैतन्य ग्रहण करने लग गया है.., और इस चैतन्य का प्रभाव, मेरी शरीर के रोम-रोम पर पड़ रहा है। आपके भीतर से ही.., प्रकृति बहनी., प्रारंभ हो जाएगी.., और उस प्रकृति की ब्रह्मशक्ति का नाँद..., आपको भी सुनाई आना, प्रारंभ हो जाएगा"
चित्त-शुद्धि की प्रक्रिया , पूर्ण हो गई है। अब चित्त पवित्र और शुद्ध होकर.., प्रकृति के साथ, समरस हो रहा है, और इस कारण चैतन्य ग्रहण करने लग गया है.., और इस चैतन्य का प्रभाव, मेरी शरीर के रोम-रोम पर पड़ रहा है। आपके भीतर से ही.., प्रकृति बहनी., प्रारंभ हो जाएगी.., और उस प्रकृति की ब्रह्मशक्ति का नाँद..., आपको भी सुनाई आना, प्रारंभ हो जाएगा"
( प.पू. बाबा स्वामी जी )
हि का स यो 4⃣ पेज 177
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