Aneri:
॥जय बाबा स्वामी॥
हमारी निष्ठा नाशवान वस्तुओं के प्रति है। परमात्मा जो शाश्वत रूप में है , उसकी ओर किसी का ध्यान नही है। नाशवान से शाश्वत तक की यात्रा ही अंधेरे से ऊजाले की ओर की यात्रा है, आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा है।
*हिमालय का समर्पण योग ४/२२५*
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