सुपात्र शिष्य के इंतजार में

अब तो बस बाकी बचा जीवन उन शिष्यों
के इंतज़ार मे ही कटेगा, ऐसा प्रतीत होता
है क्योंकि अब जीवन में पाने के लिए कुछ
रह ही नहीं गया है । बस, सबकुछ देने की
इच्छा है । पर इच्छा करके दे नहीं सकता ।
जब तक सुपात्र शिष्य नहीं मिलेंगे, वह दिया नहीं जा सकता । इस आध्यात्मिक
ज्ञान के खजाने का द्वार खोलकर मैं आँखों
की  पलकें बिछाकर इंतजार कर रहा हूँ -
जो आए और मेरे खजाने को लूटकर ले
जाए जो लुटाने के लिए मैं बैठा हूँ। जब
तक वे नहीं आते , मेरे हाथ में कुछ नहीं
हैं । हैं तो बस इंतजार , इंतजार..... और
इंतजार...........
         सुपात्र शिष्य के इंतजार में........
मधुचैतन्य जुलाई,ऑगस्ट, स्प्टेंम्बर
2009 पेज 4

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी