मैं कौन हूँ ?
श्री गुरुदेवजी ने कहाँ अगर अपने -आपको जानना है , तो अपने -आपसे ही प्रश्न करो की मैं कौन हूँ ? इस प्रकार से तीन बार प्रश्न करो तो जान जाओगे की तुम कौन हो । मैंने भी आँखें बंद की और अपने -आपसे ही प्रश्न किया , "मैं कौन हूँ ? मैं कौन हूँ ? मैं कौन हूँ ?" धीरे -धीरे आँखें कब बंद हो गई , पता भी नहीं चला । हम यह प्रश्न जैसे ही स्वयं से करते है , हमारा चित्त भीतर की ओर चला जाता है । हम दुनियाभर की खोज करते है , पर -अपने -आपको कभी नहीं खोजते है । जो खोज करना आवश्यक है , वह छोड़कर बाहर सब खोजते रहते है । और जैसे ही यह प्रश्न जानने का प्रयास करते है , तो हमारी भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाति है । और जब भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाती है , ' तो हम जान जाते है - "शरीर और "मैं " अलग -अलग है ।" और "मैं " शरीर से अलग हो जाता है और एक आध्यात्मिक क्रांति घटित होती है । . . . . . .
ही .का .स .योग १ /७२
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