गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में , सगुणरूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं?

*साधक:* गहन ध्यानयोग निर्गुण-निराकार है तो आप आपकी मूर्ति रूप में , सगुणरूप में क्यों स्थापित करना चाहते हैं? 

*साधक:* मैंने अभी आपको बताया कि हमें सेल्फिश(स्वार्थी) नहीं होना है। हमको मिल गया , समाप्त हो गया-ऐसा नहीं। अगर ऐसा ही हमारे गुरु सोचते तो हम तक यह चीज पहुँचती क्या? नहीं पहुँचती। तो यह आपके लिए हैं ही नहीं। यह उनके लिए है जो अपने जीवनकाल के बाद में आने वाले हैं और तब हम कोई नहीं रहेंगे। तब वह अनुभूती उन तक पहुँचने का यह माध्यम है, वह उन तक पहुँचाने का तरीका है। उस तरीके में उसको स्थापित किया हुआ है। तो पहली बार किसी जिवंत गुरु ने अपनी जीवंत शक्तियाँ अपने जीवंत शरीर में स्थापित कीं। ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ। इसलिए हुआ है कि इसका उद्देश्य है कि वह अगली पीढियो तक पहुँचाना है , आगे की पीढीयों तक जाना है। आज की पीढ़ी को उसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

*मधुचैतन्य अप्रैल २००७*
*॥आत्म देवो भव:॥*

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