परमात्मा

परमात्मा एक है। परमात्मा सबकी माँ है। परमात्मा की भाषा चैतन्य की भाषा है। परमात्मा का धर्म मनुष्य धर्म है। परमात्मा सभी मनुष्यों से बात करना चाहता है; बस मनुष्य जब तक अपने शरीर से निर्मित विचारों पर नियंत्रण नहीं करता, तब तक परमात्मा की चैतन्य की भाषा समज नहीं सकता है। इसलिए निर्विचारता आवश्यक है और निर्विचारता के लिए ध्यान आवश्यक है।

HSY 1 pg 287

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