आश्रम तो आज से 20 साल पूवॅ ही एक राजा अपने 50 किलोमीटर में फैले टी गाडॅन में बनाने को तैयार था, लेकिन वह आश्रम तो बनता पर सामूहिकता में नहीं बनता।

आश्रम सामूहिकता में निमाॅण हो, यही प्रभु से प्राथॅना है।

अगर आश्रम को 1 लाख रू. की आवश्यकता है, तो एक व्यक्ति से 1 लाख रू. स्वीकार करने से अच्छा है 1रू. 1 लाख साधकों से स्वीकार किया जाए,

यह समपॅण आश्रम की पवित्र स्थली के निमाॅण के कायॅ में परमात्मा प्रत्येक साधक को अपना योगदान देने की शक्ति प्रदान करे, इसी शुद्ध इच्छा के साथ नमस्कार।

आपका
बाबा स्वामी
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2005
जुलाई-अगस्त-सितंबर
मधुचैतन्य

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