Posts

Showing posts from August, 2017

सारी भविष्य की संभावनाएं युवा पीढ़ी के हाथ मे है।

सारी भविष्य की  संभावनाएं युवा पीढ़ी के हाथ  मे है। आनेवाली मनुष्यजाती का निर्धारण युवापिढी ही करेगी आपने अपने जीवन मे कितनी ही संपत्ति  जोड ली और संतति 'कुपूत' है,  तो वह आ...

गुरूकृपा और गुरुदक्षिणा में ही जीवन है।

गुरु जी तुम्हें सौंपते है, वह 'गुरूकृपा' है और तुम उनका क़र्ज़ चुकाने के लिए सौंपते हो, वह 'गुरुदक्षिणा' है। बस 'गुरूकृपा' और 'गुरुदक्षिणा' में ही जीवन है। HSY 1 pg 146

जब जागो तब सबेरा

वर्तमान  में  रह  कर ही  प्रगती  की  जा सकती  है  । 'जब  जागो  तब  सबेरा  ' ऐसी  कहावत  है । तो  आओ  ,आज  जागे  है  तो  आज  से  ही सही ....आध्यात्मिक  उन्नति की और  एक -एक  कदम  मजबुतीस...

जीवंत मूर्तिया

"वे जीवंत मूर्तियाँ स्वयं बोल उठेंगी, वे मनुष्य के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देंगी, प्रत्येक समस्या का समाधान देंगी अशांत मन को 'शांति' देंगी, भयभीत मन को 'विश्वास' देंगी, निरा...

उपासना पध्दति श्रेष्ठ है या ध्यान श्रेष्ठ है?

एक दिन सुबह -सुबह मैने सूर्य के दर्शन किए  और सूर्यदेव को ही नमस्कार करके मैने मेरे गुरूदेव को याद किया  और प्रार्थना की "गुरूदेव,  मेरा मन बडी दुविधा मे है। कुछ मागॅ बताइए -उप...

गुरुदेव के माध्यम से परमात्मा तक

नदी के उस पार 'परमात्मा' होता है और नदी के इस पार 'हम' होते हैं। हम चाहकर भी उसे और वे चाहकर भी हमें मिल नहीं सकते हैं। लेकिन नदी (जीवनरूपी नदी) में एक स्थान ऐसा आया, जहाँ पर परमात्म...

મનુષ્ય પોતાના અહંકારને કારણે સમજે છે- હું બંધનમાં છું.

" પ્રત્યેક મનુષ્ય મુક્ત છે પણ મનુષ્ય પોતાના અહંકારને કારણે સમજે છે- હું બંધનમાં છું. અને આ ભ્રમ તો જીવનભર બન્યો રહે છે.  આત્મા ક્યારેય બંધનમાં હોતો જ નથી. માત્ર એક ભ્રમની દશા ...

प्रत्येक मूर्ति का एक-सा आभामण्डल होगा,एक-सा विश्व होगा।

" कुछ मूर्तियाँ अच्छे ऊर्जास्थानों का निर्माण करेंगी यानी मूर्तियों के स्थापित होने के बाद हीअच्छे ऊर्जास्थानों  का निर्माण होगा।और कुछ मूर्तियों के संदर्भ में ऐसा हो...

प्रत्येक विचार की निर्मिति मनुष्य के ध्वारा ही होती हैं

प्रत्येक विचार की निर्मिति मनुष्य के ध्वारा ही होती हैं क्योंकि प्रकृति के कोई अपने विचार नहीं होते हैं | विचार ही अप्राकृतिक हैं | इसलिए जैसे ही हम प्रकृति में जाते हैं, स्...

परमात्मा

*इस  विश्व  में  परमात्मा   सर्वत्र  है । *वह  प्रत्तेक  मनुष्यमात्र  में  बसता  है , प्रत्तेक  प्राणी  में  बसता  है । *हम  पास  के  परमात्मा  को  छोड़कर  बाहर  के  परमात्मा...

स्वामीजी पधारो

वैसे  तो  गुरु  के  दर्शन  की  अभिलाषा  सभी  साधकों  को  सदैव  होती  ही  है । किंतु  विशेष  उत्सवों  के  समय  यह  उत्कंठा , यह  अभिलाषा  अपने  चरमोत्कर्श  पर  होती  है । गुरु...

'गुरुकार्य' यानी आत्मा का कार्य

'गुरुकार्य' यानी आत्मा का कार्य, जिसे करने से अपनी आत्मा को प्रसन्नता मिले, वह कार्य। क्यूँकि आत्मा को प्रसन्न करने के लिए हम जो भी कार्य करेंगे, उस से आत्मा प्रसन्न होगी। और ...

सद्गुरु को पहचानने के लिए प्रथम निसर्ग से जुड़ना होगा

"सद्गुरु को पहचानने के लिए प्रथम निसर्ग से जुड़ना होगा और निसर्ग से जुड़ने के लिए प्रथम अबोध बालक बनना होगा। क्योंकि अबोधित के बिना पवित्रता आ नहीं सकती है। पवित्रता से मेरा ...

गुरु साक्षात परब्रह्म

"गुरु  साक्षात  परब्रह्म " इस  एक  वाक्य  में  ही  बड़ा  रहस्य  छुपा  हुआ  है ।  वह  जिसने  अनुभव  कर  लिया , उसे  जानने  के  लिए  कुछ  बाकी  ही  नही  रहता  है । [ आध्यात्मिक सत्...

गुरुसेवा सर्वश्रेष्ठ  पुन्यकर्म  है

सदगुरु  के  लिए  किया  गया  "गूरूकार्य " ही  वह  पुण्यकर्म  है  जो  आपको  लाखों  आत्माओं  की  सेवा  का  अवसर  प्रदान  करता  है । लाखों  आत्माओं  की  सेवा  करने  का  "सौभाग्य " ...

स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर में विसर्जन ' की प्रक्रिया

वास्तव में,यह 'स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर में विसर्जन ' की प्रक्रिया है। लेकिन इस प्रक्रिया में अगर एक से अधिक स्थान का निर्माण हो तो वह अच्छा प्रतीत होता है। बाद में मूर्ति...

सर्विसिंग

शरीर  एक  वाहन  है  और  यह  वाहन  सर्विसिंग  के  लिए  "आश्रमरूपी " गैरेज  में  साल  में  एक  बार  तो  भी  लाना  ही  चाहिए ,  जहाँ  वह  अपनी  मर्जी  से  नही , मैकेनिक  के  मर्जी  स...

जय गणेश

" हे  बाप्पा ! आप  शुद्धता ,  पवित्रता  का  प्रतीक  है  और  सुख -संतोष  के  दाता  भी ! इस  इट -सीमेंट  के  घर  को  तथा  पंचतत्वों  से  निर्मित  देह  को  शुद्ध -पवित्र  रखने  का  प्र...

ध्यान करने से दो प्रकार की घटनायें घटती है।

ध्यान करने से दो प्रकार की घटनायें घटती है। प्रथम तो, ख़राब विचारों से शरीर के आसपास जो ख़राब ऊर्जा निमित हुई रहती है, वह इकठा होनी बंद हो जाती है। और फिर जो ख़राब ऊर्जा जमा है, ...

समर्पण ध्यान

समर्पण  ध्यानयोग , ध्यान  की  वो  योग  पद्धति  है  जिस  पद्धति  से  एक  संपूर्ण  योग  की  स्थिति  आप  आपके  जीवन  में  प्राप्त  कर  सकते  है । योग  के  द्वारा , आपके  पूरे  शर...

सदगुरु आशीर्वाद देकर मुक्त नही होते

"शिष्य  आशीर्वाद  लेकर  छूट  जाता  है  लेकिन  सदगुरु  आशीर्वाद  देकर  मुक्त  नही  होते , आशीर्वाद  पूर्ण  फलिभूत  होने  तक  वे  चेतना  के  रूप  में  शिष्य  के  सदैव  साथ  ह...

भगवान पार्श्वनाथ

* आत्मा  सदैव  अनंत  चेतना  तथा  परमानंद  से  युक्त  होती  है । कोई  भी  मनुष्य  उसे  जाने  बिना , उसके  प्रति  श्रद्धा  रखे  बिना  तथा  उसमे  समाहित  हुए  बिना  सच्चा  सुख  प...

जीवंत मूर्तियाँ स्वयं बोल उठेंगी ,वे मनुष्य के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देंगी,

" वे जीवंत मूर्तियाँ स्वयं बोल उठेंगी ,वे मनुष्य के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देंगी, प्रत्येक समस्या का समाधान देंगी अशांत मन को ' शांति ' देंगी, भयभीत मन को ' विश्वास ' देंगी, निर...

12 सालो की ध्यानसाधना

चित्त को पवित्र करने मे  12  सालो की  ध्यानसाधना   करनी  होती है। यह क्षणभर  मे  संभव  नही है । जो चित्त  क्षणभर  मे  पवित्र  हुआ,  वह क्षणभर मे दूषीत भी  हो  सकता है। वह अस्थाय...

आत्मा बनो

"मन "कई  बुरी  बाते  सोचता  है । "शरीर "वह  सब  करने  को  भी  तयार  हो  जाता  है , "बुद्धि "भी  मान  जाती  है । इन  तीनों  से  ऊपर  "आत्मा " होती  है । वह  इन  तीनों  की  सहमति  होने  पर  ...

शुद्ध इच्छा का वरदान

मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद मनुष्य को शुद्ध इच्छा का वरदान मिलता है कि वह जैसी इच्छा करे, वैसा ही स्वयं का निर्माण कर सकता है। HSY - 3

હું નો અહંકાર એક શરીરનો સહુથી મોટો વિકાર છે

"   'હું' નો 'અહંકાર' એક શરીરનો સહુથી મોટો વિકાર છે જે ખૂબ જ સૂક્ષ્મ હોય છે. અને તે જતો રહ્યો એવું લાગે છે.  પરંતું તે જતો નથી. તે રૂપ બદલી નાખે છે. એટલા માટે એના નવા રૂપને ઓળખવુ ખૂબ ક...

सदगुरु सदैव आत्म्स्वरूप की स्थिति में रहते है।

सदगुरु  सदैव आत्म्स्वरूप की स्थिति में रहते है। उनके जैसी स्थिति हमें भी पानी होगी तो हमें उनके साथ चित से जुड़ना होगा। जय बाबा स्वामी HSY 4 pg 139

समर्पण ध्यान

गुरु  आज्ञा  से  स्वामीजी  उस  ध्यान  पद्धति  को  समाज  में  लाए । गुरुओं  के  प्रति  समर्पण  भाव  के  कारण  ही  गुरुदेव  इस  ध्यान  पद्धति  को  जान  सके  अत: इसका  नाम  रखा...

सम्पूर्ण तृप्त स्थिति ही मोक्ष स्थिति है

शरीर  तो  साथ  नही  दे  रहा  है , लेकिन  फिर जीवित  रहने  की  लालसा  अभी  बाकी  है , तो  उस  लालसा  को  पूर्ण  करने  के  लिए  आत्मा  को  फिर  दुसरा जन्म  लेना  पड़ता  है । लेकिन  ...

संतुलन

अगर  नारियल  में  अच्छा  खोबरा  अंदर  तयार  हो  गया  और  अच्छी  मिठास  उसमे  प्राप्त  हो  गई  तो  फिर  नारियल  में  पानी  भीतर  नही  रहेगा  क्योंकि  वही  पानी  खोबरे  में  ...