गुरुकार्य ही मेरे जीवन का उद्देश है

जीन्हे मेरी शरीर की होने वाली तकलीफो की और पीडा की जानकारी है वह कहते है की इतनी तकलीफ उठाकर क्यो बाहर घुमते हो  अब उन्हे कैसे समझाऊ की गुरुकार्य ही मेरे जीवन का उद्देश है वही अगर नही रहा तो मै जीकर क्या करूगा वह तो मै रोक ही नही सकता क्यो वह मै करता नही हु हो जाता है रही बात शरीर की तकलीफो की तो वह मेरे भोग नही है वह कीसी और के होते है उनके वह भोग नष्ट कीये बीना आत्म साक्षात्कार संभव ही नही है कोई भोग नष्ट नही हो सकता रूपान्तरीत हो सकता है
          
बाबा स्वामी

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