तुम्हारा शरीर का निर्माण ही गुरुशक्तियों ने अपनी इच्छा के अनुसार किया है

" तुम्हारा शरीर का निर्माण ही गुरुशक्तियों ने अपनी इच्छा के अनुसार किया है, इसलिए तुम्हारा शरीर ही गुरुशक्तियों का माध्यम  बनेगा क्योंकि शरीर की संरचना ही देने की दृष्टि से की गई है।तुम्हारा अंग-प्रत्यंग देता है,इसी के कारण ही तुम्हारा पात्र बड़ा हो गया है। और प्रत्येक सद्गुरु ने इस शरीर में ' ऊर्जाशक्ति ' इसलिए भरी है ताकि इस शरीर के माध्यम से वह उन लोगों तक पहुँचे ,जिन तक वे पहुँचाना चाहते हैं। शरीर ही दिव्य है, यह दिव्य शरीर होने  के कारण ही इस पवित्र पहाड़ी पर आ सका है और तुम्हारे गुरु के कार्य के कारण ही तुम इस पहाड़ी से जाने वाले हो। तुम पहले मनुष्य हो जो यहाँ आने के बाद पहाड़ी पर से उतरोगे।आज तक यहाँ जो भी आया,वह वापस कभी गया ही नहीं है। यह सब उस ' दिव्य शरीर ' के कारण ही संभव हुआ है। इसलिए इस  ' दिव्य शरीर ' को ही माध्यम  बनाओ क्योंकि  यह  वह शरीर है,जो अनेकों संतों, मुनियों, कैवल्य-कुंभक योगियों के संपर्क में आया है।इतने लोगों के आशीर्वाद इस शरीर को ही प्राप्त  हुए हैं, इतनी महान हस्तियों का सान्निध्य इस शरीर को प्राप्त हुआ है। वे इस शरीर के माध्यम से तुम्हें जानते हैं,तो इसी शरीर को भविष्य में ' माध्यम ' बनाओ,यह शरीर ही तुम्हारे और गुरुशक्तियों के बीच का पुल है।अब इसी पुल का निर्माण  साधक व गुरुशक्तियों के बीच करो,ताकि इसी शरीर के  माध्यम से  गुरुशक्तियाँ साधकों तक पहुँच सके क्योंकि गुरुशक्तियाँ इस शरीर के संपर्क में हैं और सामान्य मनुष्य तक पहुँचाना चाहती हैं। और सामान्य मनुष्य गुरुशक्तियों तक पहुँचाना चाहता है,पर उसके पास पहुँचने का ' माध्यम ' नहीं है। यदि तुमने इस शरीर को ही माध्यम बनाया तो गुरुशक्तियाँ सामान्य मनुष्य तक और सामान्य मनुष्य गुरुशक्तियों तक पहुँच सकता है।....

हि.स.यो-४                    
पु-३०७

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