श्री गणेश


श्री गणेश का रूप बहोत ही मोहक है। श्री गणेश की सूंड बताती है कि प्रत्येक वस्तु की अनुभूति लो, अनुभूति पर ही विश्र्वास करो। संवेदनशील बनो, संवेदनाओ से विश्र्वको जानो। उसका बडा मस्तक बताता है - सदैव शांतचित्त रहो, सभी  परिस्थितियों में से मनुष्य शांति से निकल सकता है। अपनी मन की शांति बनाए रखो। श्री गणेश की आँखे बारीक हैं। यानी मनुष्य को अपनी दृष्टि सदैव पैनी रखनी चाहीए।सदैव सूक्ष्म दृष्टि ही मनुष्य को सत्य का दर्शन करी सकता है। सूक्ष्म दृष्टि से ही आभामंडल को जाना जा सकता है। श्री गणेश के बडे बडे कान बताते हैं - मनुष्य को अधिक सुनने की आदत डालनी चाहीए।। सदैव अच्छा अधिक से अधिक सुनो। श्री गणेश का बडा पेट उदारता का प्रतिक है, समाधान का प्रतिक है। समाधान मनुष्य का पेट बडा होता है, क्योंकी वह तृप्त होता है। श्री गणेश का बडा शरिर शक्तियों का प्रतिक है। मनुष्य को सदैव शक्तिशाली होवा चाहिए।
दुसरा महत्वपूर्ण बात है - उनके शरिर की संरचना चैतन्य का निर्माण करती है। वास्तवमें यह आकार चैतन्य ग्रहण करने के लिए ही हुआ है। यह आकार पृथ्वी के चैतन्य को ग्रहण करता है।
श्री गणेश पवित्रता के देवता हैं। बिना पवित्रता के कोई साधना पूर्ण नहीं हो सकती है। पवित्रता से मेरा आशय केवल शरिर की पवित्रता से नहीं है, पवित्रता से मेरा आशय चित्त की पवित्रता से है।
एक कहानी के माध्यम से इसे समझाया गया है। पार्वतीजी नहा रही थी और श्री गणेश बाहर पहरा दे रहे थे। वास्तवमें हमारे शरीर की ऐसी ही संरचना है।
हमारे शरिर में मूलाधार चक्र पर श्री गणेश का स्थान है और उसके पास ही कुंडलिनी माँ का स्थान है। कुंडलिनीमाँस्वरूप पार्वती पास ही रहती है। उस कुंडलिनी शक्तिको जगाने के लिए प्रथम श्री गणेश के पास जाना होता है। वे प्रथम देख़ते हैं कि उनकी माँ तक पहुंचनेवाला अधिकारी व्यक्ति है या नहीं। वह जगाने वाला व्यक्ति अधिकारी होना चाहीए, अन्यथा मूलाधार चक्र के ऊपर ही मनुष्य पहुँच नहीं सकता है। मूलाधार चक्र का प्रभाव विसर्जन संस्थान पर होता है। मैल का विसर्जन... फिर वह मैल शरिर का हो या चित्त का हो, मनुष्य मैलरहित, पवित्र होना चाहीए। चित्तशुध्धि महत्वपूर्ण है।

श्री हरि महाराज
हिमालय का समर्पण योग
पृष्ठ क्रमांक - ५४, ५५

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी