मूल सिद्धांतो का सार

प्रिय साधको ,
आज की सुबह बड़ी ही मनमोहक थी | पंछी चेह्चहा रहे थे , मोर भी सभी मोरो को पुकार दे रहा था | और तूफानी बारिश का अंत हो चूका था , में आदत अनुसार स्वामीजी के सामने वाले सोफे पर जा कर बेठा और भाभी की बनाई चाय का आनंद ले रहा था | स्वामीजी ने कहना प्रारंभ किया , उन्होंने कहा " मुझे सभी गुरुकार्य करने वाले साधको की फ़िक्र है |" और यह कहकर उन्होंने हमें समझाया की कैसे हम में से कितने ही साधक समर्पण ध्यान पद्धति के मूल सिद्धांतो को समझ ही नहीं पा रहे है |

मैंने उन मूल सिद्धांतो का सार लिखने का प्रयास किया है |

*पहला सिद्धांत :अपने पूर्ण रूप से किये हुए गुरुकार्य की चर्चा लोगो के समक्ष अच्छा या स्वामीजी का प्रिय बन्ने के लिए ना करे , क्योकि स्वामीजी हर साधक को सामान प्रेम करते है | पर आपके ऐसा करने से आप स्वयं ही कर्मो के बन्धनों से बांध जाते है |*

*दूसरा सिद्धांत :गुरुकार्य करते समय अपने अन्दर हो रहे चैतन्य के प्रवाह और उससे हो रहे आपके स्थिति में बदलाव का आनंद लेना न भूले और सदा ही हर परिस्थिति गुरु चरणों में समर्पित करे |*

*तीसरा सिद्धांत : आपके द्वारा हुए गुरुकार्य को दक्षिणा /दान समझ कर के ही करो | औरे में के अहंकार को बढ़ावा मत दो |*

Kindly Read the message of Swamiji And Forward this to all.  स्वामीजी के सन्देश को पढ़ कर दुसरो के साथ इस प्रसाद रूपी सन्देश को बात कर अपना गुरुकार्य पूर्ण करे |

With regards
Ambareesh

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