चित्त का मूल स्वरूप

एकदम  खाली  रहना  ही  चित्त  का  मूल  स्वरूप  है ।  हम  ही  है  की  दूनियाभर  का  कचरा  उस  चित्तरूपी  अमृतकलश  में  भर  लेते  है  और  फिर  जब  वह  कमज़ोर  हो  जाता  है  तो  जीवन  में  परेशान  हो  जाते  है ।

परमपूज्य गुरुमाऊलि

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