सामान्य मनुष्य को भी केवल दर्शन सेअनुभूति होगी।

बस यही प्रमाण यह मूर्ति प्रदान करेगी।सामान्य मनुष्य को भी केवल दर्शन सेअनुभूति होगी। सामान्य मनुष्य को चैतन्य स्पंदन, चेतनाशक्त्ति यह सब बातें नहीं समझ मेंआती है।सामान्य मनुष्य को अनुभूति प्रथम बार में जो होती है,वह होती है,अच्छा लगा । यह अनुभूति दर्शनमात्र से ही होगी।और फिर उसे अनुभव होगा---जो आत्मा का समाधान मैं जीवन में खोज रहा था वह मुझे यहाँ प्राप्त हो गया है।बस यह  'आत्मसमाधान ' ही उसकी आगे की यात्रा प्रारंभ कर देगा।और यह संभव है क्योंकि उस मूर्ति का निर्माण यही संकल्प करके किया जाएगा कि जो अनुभूति मुझे मेरे
जीवन में हुई है, वही
'आत्मसमाधान ' की अनुभूति उसे भी हो जो उसके दर्शन से पाना चाहता है।सामान्य-से-सामान्य मनुष्य को बड़ी सामान्यता के साथ सामान्य रूप की
' अनुभूति ' कि
" अच्छा लगा "
कराने का यह एक प्रयास है। और यह एक -सी अनुभूति सभी को होगी। 'आत्मसमाधान ' के संकल्प को लेकर इन मूर्तियों का निर्माण किया गया हो,तो भी प्रथम लोग अपने सांसारिक बातों का समाधान ही उससे पाएँगे। लेकिन धीरे-धीरे वे अनुभव करेंगे कि प्रत्येक प्रश्न का समाधान इस स्थान पर हो सकता है।.....

हि.स.यो-४                 
पु-३११

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