जीवंत मूर्तियाँ

"अब प्रश्न है कि जीवन तो बहुत छोटा है और गुरुकार्य तो बहुत बड़ा है और शरीर तो नाशवान है। तो यह नाशवान शरीर से इतने वर्षों तक कार्य कैसे हो सकता है ?इस शरीर को इतने वर्षों तक
रखा जा सकता है,वह ' मूर्तियों  के माध्यम ' से। इसी शरीर की मूर्तियों (प्रतिरूप) का निर्माण करो और अपने जीवनकाल में ही अपना जीवन ही संकल्प बनाकर  इन मूर्तियों में प्रवाहित करो।क्योंकि मूर्तियाँ छोटी होती हैं, उनमें प्रवाहित करना आसान है,पहाड़ में या किसी स्थान में प्रवाहित करना कठिन है। और जबअपने ' जीवंत चैतन्य ' को मूर्तियों में प्रवाहित करोगे,तो  मूर्तियों भी जीवंत हो जाएँगी।अपने चैतन्य को मूर्तियों में प्रवाहित करते समय एक संकल्प  करो -- जो 'आत्मसमाधान ' मुझे मेरे जीवन में मिला,वही ' आत्मसमाधान 'प्रत्येक उस मनुष्य  को मिले जो इन मूर्तियों के माध्यम से पाना चाहे। ऐसा करोगे तो वह मूर्तियाँ तुम्हारा माध्यम बनकर तुम्हारा बचा हुआ कार्य करेंगी।ये मूर्तियाँ ' जीवंत मूर्तियाँ ' होंगी।यह मनुष्य इतनी जीवंत होंगी जितने जीवंत तुम स्वयं हो। और जो ' दिव्य शरीर ' गुरुशक्तियों ने माध्यम बनाया है,उसी शरीर को जैसा-का-तैसा मनुष्य समाज के  विभिन्न स्थानों पर स्थापित करो। बस तुम्हारे जीवन का यही उद्देश् है,बस इतना कार्य करो। बाकी का कार्य वह मूर्तियाँ ही कर लेंगी। वह मूर्तियों के सान्निध्य में मनुष्य सर्वोत्तम इच्छा
'आत्मसाक्षात्कार ' की ,वह भी पूर्ण होगी।वह मूर्तियाँ 'आत्मसाक्षात्कार 'भी प्रदान करेंगी। जो आज तक गुरुशक्तियों को संभव नहीं हुआ, अब वह होगा। यह मूर्तियाँ विश्व के विभिन्न स्थानों पर स्थापित करो ताकि ' आत्मसाक्षात्कार ' का आशीर्वाद प्रत्येक उस आत्मा  को प्राप्त हो ,जो पाना चाहती है।....

हि.स.यो-४                   
पु-३०८

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