गुरु के शरीर से एक प्रक्रिया अविरत चलती रहती ह
"गुरु के शरीर से एक प्रक्रिया अविरत चलती रहती है ,वह है शिष्य के चित्त की शुद्धिकरण की प्रक्रिया |"
-हि.स.यो.१/१९२
"साधक अपना अस्तित्व जितना समाप्त करेगा ,उतना ही अधिक वह परमात्मा का माध्यम बनेगा | "
-हि.स.यो.१/१९९
"प्रत्येक मनुष्य गुरु बन सकता है | मनुष्य योनि ही ऐसी योनि है जिससे नर से नारायण तक की यात्रा की जा सकती है | यह मानवजीवन ही वह जन्म है जो जन्म लेकर कोई भी आत्मा गुरु बन सकती है ;कोई भी यानि कोई भी | सभी मनुष्यों को इसके सामान अवसर प्राप्त है ; निशुल्क प्राप्त है | "
-हि.स.यो.१/२००
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