आत्मस्माधान
'आत्मस्माधान' प्राप्त करने की शुध्द इच्छा आत्मा की सबसे बड़ी और एकमात्र शुध्द इच्छा है, लेकिन शरीर से आत्मा तक पहुँचे बिना यह इच्छा कोई नहीं कर सकता है।लेकिन आएँगे, 'आत्मस्वरूप ' प्राप्त किए लोग भी आएँगे और वे केवल ' मोक्ष ' की स्थिति ही मांगेंगे। क्योंकि उन्हें ज्ञात रहेगा-- यह मूर्ति परमात्मा की नहीं है,पर इसमें परमात्मा विद्यमान है क्योंकि इसमें सारे सदगुरुओं की सामूहिक शक्तियाँ परमात्मा के रूप में विद्यमान हैं। इन मूर्तियों के माध्यम से ' ईश्वरीय अनुभूति ' को अगली पीढ़ियों तक भी पहुँचाया जा सकता है।इन मूर्तियों के लिए स्थान स्वयं निर्माण होंगे और तुम्हारे सामने आएँगे। गुरुशक्तियाँ स्वयं इच्छा व्यक्त करेंगी--हम इस स्थान पर ही स्थापित होना चाहते हैं। जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे,वैसे-वैसे , रास्ते स्वयं ही खुलते चले जाएँगे।
" तुम्हारे गुरुओं ने सालों तपस्याऔर साधना करके इस ईश्वरीय अनुभूति को सँजोकर रखा है,सँभाला है,तुम्हे उसे तुम्हारे जीवनकाल में केवल सँजोना नहीं है,उसे कई माध्यमों में वितरित करके वृद्दीगत करना होगा।तुम्हारे गुरुओं ने अपने जीवन का समर्पण कर जो पाया,वह सब तुम्हें समर्पित कर दिया, इसी आशा और ' विश्वास 'से कि तुम उसे वृद्दीगत करोगे और परमात्मा को जो धर्म की सीमाओं में बाँधा गया है,उसे मुक्त्त करोगे।परमात्मा सभी का है और सब परमात्मा के हैं,यह भाव ' ईश्वरीय अनुभूति ' के माध्यम से मनुष्य मे पैदा होगा।....
हि.स.यो-४
पु-३१२
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