स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर में विसर्जन ' की प्रक्रिया

वास्तव में,यह 'स्थूल शरीर के सूक्ष्म शरीर में विसर्जन ' की प्रक्रिया है। लेकिन इस प्रक्रिया में अगर एक से अधिक स्थान का निर्माण हो तो वह अच्छा प्रतीत होता है। बाद में मूर्तियों में स्थापित  की गई संकल्पशक्त्ति से ही सूक्ष्म शरीर का विस्तार बढ़ने लगेगा और स्थूल शरीर का बोझ भी कम होने लगेगा। क्योंकि यह कार्य बहुत विशाल स्तर पर होने वाला है जिसका अंदाज अभी किसी को भी नहीं है।"
"ये मूर्तियाँ तो खाली होने के लिए केवल निमित्त होंगी लेकिन पास की लगने से मनुष्य आसानी से खाली हो जाएगा। वह खाली कब हो गया ,उसका उसको भी पता नहीं चलेगा। मूर्तियाँ तो मनुष्य के अहंकाररहित होने में केवल निमित्त होंगी।मनुष्य जितना खाली होगा , सामूहिकता की शक्त्ति उतनी ही गुरुओं के आशीर्वाद के रूप में प्राप्त होगी। और बाद में गुरुओं की सकारात्मक सामूहिक शक्त्ति का प्रभाव ही उसे संतुलित करेगा और संतुलित मनुष्य के हाथ से संतुलित कार्य घटित होंगे और उसका जीवन एक आत्मिक समाधान और शांतिभरा जीवन हो जाएगा। क्योंकि जैसे ही मनुष्य  का अहंकार समाप्त होगा,उसके ही भीतर की आत्मा प्रकट होगी। उस आत्मा को परमात्मा की शक्त्ति प्राप्त होगी और उस मनुष्य को होने वाली चैतन्य की अनुभूति  उसे परमात्मा का साक्षात प्रमाण देगी।"....

हि.स.यो-४                  
पु-३१४

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