लिंग भाव का समर्पण

शरीर  भाव  अंतिम  पादान  है  क्योंकि  आत्मा  ना  तो  पुरुष  होता  है  और   न  स्त्री  होती  है । जब  मै  प्रवचन  में  कहता  हूँ  की  मै  आपके  आत्मा  की  माँ  हूँ  तब  मै  यह  भूल  जाता  हूँ  की  मै  एक  पुरुष  हूँ , मै  माँ  कैसे  हो  सकता  हूँ ! यानी  इस  देह  भाव  की  अंतिम  पादान  को  भी  आपको  पार  करना  होगा । यह  सब  बाते  इसलिए  लिख  रहा  हूँ , कभी  आपको  ध्यान  में  ऐसी  ऊँचाई  प्राप्त  हो  तो  "मै मर जाऊँगा " का  भाव  मन  में  मत  लाना , या  आप  स्त्री  है  तो  आत्मग्लानी  का  भाव  मन  में  मत  लाना  की  "मै  तो  एक  स्त्री  हूँ , मै  कैसे  ऊँचाई  तक  जा  सकती  हूँ "। वास्तव  में  ऊँचाई  पर  न  पुरुष  जा  सकता  है  और  न  स्त्री  जा  सकती  है , वहाँ  तो  केवल  आत्मा  जा  सकती  है । अब  आप  आत्मा  बनो ।

पूज्य गुरुदेव
   

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