सद्गुरु को पहचानने के लिए प्रथम निसर्ग से जुड़ना होगा

"सद्गुरु को पहचानने के लिए प्रथम निसर्ग से जुड़ना होगा और निसर्ग से जुड़ने के लिए प्रथम अबोध बालक बनना होगा। क्योंकि अबोधित के बिना पवित्रता आ नहीं सकती है। पवित्रता से मेरा आशय शरीर की पवित्रता से नहीं, चित्त की पवित्रता से है। और चित्त की पवित्रता अबोधिता के बिना संभव नहीं है। अबोधिता से प्रथम देहभाव छूटता है और देहभाव छूटने के पहले देह का आकर्षण छूटता है। और देह के आकर्षण के पहले देह की सुप्त वासनाएँ छूटती हैं। आध्यात्मिक मार्ग में यह क्रमबद्ध तरीके से होता ही रहता है।"

हि.स.भा.4
प.53

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