जिवंन्त गुरू
कल शाम धामपर कुछ साधक श्री गणेश दशेन की तैयारीया कर रहे थे तो उन्हे मीला वे बोले पहले तो आप सामुहीकता मे ध्यान करने पर जोर देते थे लेकीन आजकल अकेले ध्यान करने को कहते हो ऐसा क्यो? मैने कहा जिवंन्त गुरू परीवतेन शील होता है स्थीती के अनुसार बदलता है। उस समय तुम लोग इतनी समस्या से घीरे हुये थे की अकेले ध्यान करना तुम्हारे लीये संभव नही था आज १८ साल बाद स्थीती अलग है अब तुम्हारे जीवन मे करने के लीये पाने के लीये कुछ नही रह गया तो आज तुम्हे ध्यान करने के लीये सामुहीकता की आवश्यकता नही है। कहते है पानी पीयो छान कर और गुरु करो जानकर और जाना तो केवल आत्मसाक्षात्कार से जाना जा सकता है। आध्यामीक क्षैत्र मे बीना अनुभुती के आना उचीत प्रतीत नही होता ।
बाबा स्वामी
२८/८/२०१७
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